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सूक्ष्म एवां कर्मो पण तैजस कार्मण शरीर बड़े केम ग्रहण न करे ? अर्थात् ग्रहण करेज छे. मूलम्जीवः पुना रूपकरादिवजित, ईदृग्वपूरूपि कथं प्रवर्तयेत् । पाहारपानादिकइन्द्रियार्थ के, शुभाशुभारम्भककर्मरणीह । २३ गाथार्थ- रूप अने होथ रहित एवो जीव रुपी एवा शरीर ने इन्द्रियमाटे आहारादि मां अने शुभ-अशुभ उपार्जन करनार कार्यो मां केम प्रवर्तावे ? विवेचन-जीव शरीर ने इन्द्रियादि माटे आहार-पाणी आदि ग्रहण करवामां अने शुभ-अशुभ कार्यो मां प्रवर्ताये छे ते समये जीव ने रुप- इन्द्रिय-हाथ आदि होतां नथी छतां पण ते इन्द्रियादि माटे अाहार- पाणी मादि ग्रहण करवानी अने शुभाशुभ कार्यो नी प्रवृत्ति माटे शरीर ने प्रवर्तीवे छे तो रुप, इन्द्रिय, हाथ आदि विना पण जीव शुभाशुभ कर्मो केम ग्रहण न करे ? अर्थात् ग्रहण करेज .
चेदिन्द्रियः पाणिमुखैरथाङ्ग, सपा:क्रियाः स्युभविनं विनैव । तदासमस्ताःकुणपैरजन्तुकः, क्रियाःक्रियन्तेनकथंकरेन्द्रियः ॥२४
गाथार्थ- जो जीव विना इन्द्रियो, हाथ, मुख आदि अवयवो वड़े सर्व क्रिया थाय तो जीव रहित मड़दांनो