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वाला पदार्थो ना गंध वाला पुद्गलो पण प्रांख आदि थी जोवा योग्य नथी. विवचन- प्रत्येक इन्द्रिय नो विषय अलग अलग होय छे. जे इन्द्रिय नो जे विषय होय तेज विषय ने इन्द्रिय थी जाणी शकाय,परन्तु अलग इन्द्रिय नो विषय अलग इन्द्रिय थो जागी शकाय नहीं. नासिकानो विषय गंध जागवानो छे तो सुगंधने दुर्गन्ध नासिकाथी जाणी शकायछे पण सुगन्ध अने दुर्गन्ध अांख आदि थी जोई के जाणी शकाय नहीं जेमके पात्र अने वस्त्र आदि मां सुगन्ध अने दुर्गन्ध मय पदार्थों रहेला सुगन्ध अने दुर्गन्ध नाक थी जाणी शकाय छे परन्तु एकठां थयेल सुगन्ध अने दुर्गन्ध वालाँ पुद्गलो अांख आदि थी जोई के जाणी शकाय नहीं. तेम कर्मोनो समूह परण सूक्ष्म होवा थी चर्म चक्षु थी देखी शकातो नथी. मूलम्ज्ञानेन जानात्ययमेव मेतं, कर्मोच्चयं जीवगतं तु केवली। त(य)थापुन:सिद्धरसान्निपीतं,स्वर्णादिनोतरहशाभिदृश्यते ३२ गाथार्थ- जीव मां रहेल कर्म समूह ने ज्ञान बड़े केवली भगवान जारणे छे. दाखला तरीके औषधि थी सिद्ध थयेल पारा मां रहेलु सोनु अांख बड़े जोई शकातु नथी.