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नुं दुःख होत्रा छतां परण तेनी जो मन पर असर न होय तो दुःख जणा नथी. अने बन्न े प्रकार नु दुःख न होवा छतां पण जो तेनी मन पर असर होय तो दुःख जणाय छे. एटले वास्तविक रीतिए मन नुंज दुःख छे. मन जो शुभ परिणाम मां वर्ततु होय तो दुःख ना प्रसंगे पण दुःख नो अनुभव थतो नथी. अने मन जो अशुभ परिणाम मां वर्ततु होय तो सुख ना प्रसंगे पण दुःख नो अनुभव थाय छे. सम्यग् ज्ञान द्वाराज आत्मा मां शुभ परिणाम प्रगट थाय छे. सम्यग् ज्ञान द्वारा प्रगटेल शुभ परिणाम मां वर्ततो ग्रात्मा सच्चिदानन्द रूप सुखनो अनुभव करे छे.
संसार मां पण एक मानस ताव नी पीड़ा थी बहुज व्याकुल थयेल होय अने तेज समये तेने निद्रा प्रवी गई होय त्यारे तेना संबंधी कहे छे के, “भाई सुख मां छे, माटे कोई जगाड़शो नहीं " हवे विचारो के आ समये तेने कान विगेरे कोई इन्द्रियो नुं सुख नयी, हाथपग आदि नी कोई क्रिया पण नथी. छतां पण ते सुखी कहेवाय छे. तेमां मानसिक शान्ति एज सुख गणाय छे. तेम इन्द्रियो थी उत्पन थता भोग बिना परण प्रधि, व्याधि ने उपाधि संबंधी दुःख ना प्रभावे फक्त अनन्त ज्ञान द्वाराज सिद्ध भगवंतो ने सुख होय छे. ग्रथवा कोई योगी पुरुष पोताना आत्मज्ञान मां मस्त बनवाथी पोते