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(६४) बाद तेज पारो अग्नि मां राखवाथो स्थिर थई जाय छे जेम पारा नो मूल स्वभाव चंचनता वालो होवा छतां तेवा प्रकारना संस्कार ना योगे मूल स्वभाव बदली जायछे तेम प्रात्मा नो कर्म ग्रहण नो मूल स्वभाव होवाछतां तपसंयम नी अराधना द्वारा ते स्वभाव पण बदली जाय छे. मूलम्यथापुनहिकतागुणोऽग्ना-वस्तिस्वभावो ननु मूनजातः । अस्यापिनाशोऽस्तितवाप्रयोगात्,सन्तसतीनवदहेकदापि ।।। गाथार्थ-अग्नि मां बालवानो स्वभाव मूल थी छे, छतां तेवा प्रकारना प्रयोग थी तेनो नाश थाय छे. साधु तथा सती स्त्रीने ते अग्नि कदापि बालतो नथी.. विवेचन:- अग्नि मां बानवानो स्वभाव मूल थी होवा छतां तेनी शक्ति ने घात करनार तेवा प्रकार नी सामग्री ना योगे अग्नि ना मूल स्वभाव नो नाश थाय छे, अथवा तपोबल थी, अथवा सत्यपणाना योगे साधु तथा सत्य वादी ने, तथा शियल ना प्रभाव थी सती स्त्री ने ते अग्नि बाली शकतो नथी.
मूलम्बद्धोयबाप्येष च मन्त्रयोगात तथौषधीभिर्नदहेद्विशन्तम । प्रअन्तमरिनच चकोरकतथावह्निर्दहेनोविगतस्वभावः।।