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(१५) गाथार्थः मंत्र ना प्रयोग थी तथा औषधि बडे बंधायेल अग्नि तेमां प्रवेश करनार ने बालतो नथी. बालवानो स्वभाव नष्ट थवो छे, एवो अग्नि ते अग्नि ने भक्षण करनार चकोर पक्षी ने वालतो नथी. विवेचनः-वली बीजु दृष्टांत पण जणावतां कहे छे के जेम अग्नि नो म ल स्वभाव बालवानो होवा छतां मंत्रना प्रयोग थी अग्नि मां रहेल दाहकता गुण नो नाश थवाथी, अथवा औषधि आदि थो पण दाहकता गुणनो नाश थवा थी ते अग्नि मां प्रवेश करनार ने अग्नि वाली शकतो नथी. अथवा दाहकता गुण नो नाश थया वाद ते अग्नि ने भक्षण करनार चकोर पक्षी ने ते अग्नि वाली शकतो नथी. एटले जेम मंत्र ना प्रयोग थी, अथवा औषधि प्रादि थी अग्नि नो मूल स्वभाव नाश पामी शके छे, तेम अात्मा नो कर्म ग्रहण स्वभाव मूल थी होवा छतां पण तेवा प्रकार नी सामग्री ना योगे नाश पामी शके छे.. मूलम्तथाभ्रकहेम च रत्नकम्बल,सिद्धच सूतनदहेद्ध नाशनः। तदातुयादाहकताविभावसौ,मौलीव्रजेत्ववाथनिगद्यतामिति ६ गाथार्थ-तेवीज रीते अभ्रक, सुवर्ण, रत्नकम्बल, अंने पारो विगेरे अौषधियो थी सिद्ध थयेल वस्तूने अग्नि बालतो नथी. तो ते समय अग्नि नो दाहकता गुण क्यों