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पोता ने सुखी माने छे. अहियां पण योगी पुरुष पासे इन्द्रिय संबंधी भोग नां कोई पण साधनो न होवा छता फक्त प्रात्मज्ञान द्वाराज सुख नो अनुभव करे छे. तेम सिद्ध भगवंतो ने पण अनन्त ज्ञान द्वाराज सुख नो अनभव थाय छे. तेवीज रीते संतोष थी भरपूर, पांचे इन्द्रियो ने जीतनार अने आत्मज्ञान मां मस्त एवा कोई मुनि ने कोई बीजो पुरुष पूछे के तमो केवा प्रकार ना छो ?. त्यारे ते मुनि प्रत्युत्तर प्रापे छे के हु सुखी छु. ते समये पण मुनि ने कोई वस्तु नो स्पर्श नथी, भोग नो पण सम्बन्ध नथी, गंध नो पण योग नथी, दर्शन के श्रवण पण नथी अने हाथ के पग आदि नौ कोई निया पण नथी, तो पण आत्म-संतोषी मुनि पोताने सुखी माने ,छे... ते पोताना आत्म ज्ञान द्वारा मलेल सुखनाज कारणे. तेम सिद्ध भगवंतो ने पण पोताना अनंत प्रात्म ज्ञान द्वाराज सुखनो अनुभव थाय छे, परन्तु अज्ञानी आत्मा ने आत्म सुख नो अनुभव थतो नथी. ..
लमइत्यहिसिद्धषुधिनेन्द्रियार्च-स्तथाक्रियाभिः सुखमस्त्यनंतमः । तएवतत्सौख्यभरविदन्त्यपि, ज्ञानीनसक्तोवदितुयतोऽसमम.१७ गाथार्थ-ए प्रमाणे खरेखर इन्द्रियो ना भोग विना अने मन, वचन अने कायानी चेष्टा विना परग. सिद्धो
त्मज्ञान
'मलल
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