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॥ अथ चतधिकार र
जीव अने कर्म नौसाधार आर्धेय सम्बन्ध मूलम्कर्माणि मूर्तीन्य सुमान मूर्तः, साकत्यनाकृत्य भियुक्तिरेषा । न्याय्या कथ येन हि वस्तुभिन्न नाधारकाधेयकता लमते । १ गाथाथ- कर्मो रूपी छे अने प्रात्मा अरूपी छे . तो साकार अने निराकार नो संयोग न्याययुक्त केवी रीते होय ? अलग जाति वाला नो आधार अने आधेय भाव केवी रोते घटे ? विवेचन-सरखा स्वभाव वाली अने एक जाति वाला वस्तु नो संयोग थाय छे. वस्तु भित्र स्वभाव अने भित्र जाति वाला वस्तु नो संयोग केवी रीते थाय एवो प्रश्न थाय ते स्वाभाविक छे. अहियां परण कर्म रूपी छे अने आत्मा अरूपी छे, कर्म साकार छे अने आत्मा निराकार छे. तो ते बत्र नो संयोग केवी रीते थाय आवो प्रश्न थाय ते स्वाभाविक छे; वली जे वस्तु जेमां समाय ते वस्तु आधार कहेवाय छे. अने जे वस्तु समाय छे ते वस्तु प्राधेय कहेवाय छे. जेम के द्रव्य मां गुण समाय छे. माटे द्रव्य आधार गणाय छे अने गुण प्राधेय गणाय छे. आत्मा द्रब्य छे अने सम्यक् दर्शनादि