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अरूपी एवा आकाश ने प्रश्रयि ने जेम रहेला छे तेम शरीर, तेना गुणो, तेनी क्रिया आदि अने कर्मों रूपी होवा छतां रूपी एवा जीव ने प्रश्रयि केम न रही शंके ? अर्थात् जेम कर्पूरादि पदार्थो ना सुगन्धो अने हिंग आदि पदार्थोना दुर्गन्धो रूपी होवा छतां पण रूपी एवा आकाश ने आश्रयि ने रहेला छे. तेम शरीर तेना गुणो, तेनी क्रियाप्रो आदि अने कर्मों रूपी होवा छतां पण प्ररूपी एवा जीवने प्रश्रयि ने रहेला छे. मूलम् -
इत्यादिभिर्हष्ट निदर्शनेनैस्तथा गुणात्मकैः कर्मभिरेषात्मकः । श्राश्रीयतेनिगु कोऽपि निश्चित-मात्माततः कर्मचितोभवो भवेत् गाथार्थ- पूर्वोक्त प्रत्यक्ष दृष्टांतो वड़े आ जीव गुण स्वरुप कर्मों बड़े आश्रय रुप थाय छे, तथा गुणस्वरुप कर्मो वड़े प्रा जीव मुक्त परण थाय छे अर्थात् गुण स्वरुप कर्मो थी रहीत पण थाय छे.
विवेचन-उपर बतावेल दृष्टांतो वड़े कर्म परण संसारी आत्मा नो गुण होवा थी बत्र संजोग परण थाय छे. अने बन्न मां आधार प्राधेय भाव पर घटी शके छे. अने ते गुरण रुप कर्मों थी आत्मा मुक्त पण बने छे, एटले सिद्ध परण थाय छे.
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