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कारण रूप थई शकतु नथी. कर्म छे ते अंत वालु छे अने सिद्धो ने विषे सुख अनंत छे.
विवेचन - संसार मां जे सुख थाय छे ते शाता वेदनीय कर्मं ना उदय थी थाय छे परन्तु सिद्ध भगवंतो ने जे आत्मा नुं अनंत सुख प्राप्त थाय छे ते वेदनीय कर्म नो क्षय थवाथी थाय छे, माटे सिद्ध भगवंतो ना सुख मां कर्म कारण भूत थतु नथी. जीव प्रथम अहिंसा आदि द्वारा शाता वेदनीय कर्म बांधे छे. पछी ते कर्म तो अबाधा काल पूर्ण थये, ते शाता वेदनीय कर्म उदव मां आवे छे अने ते कर्म नी स्थिति पूर्ण थये नाश पामे छे. एटले संसारी आत्मा प्रोने जे सुख थाय छे ते वेदनीय कर्म ना उदय थी थाय छे. अने ज्यारे वेदनीय कर्म नो नाश थाय, एटले ते सुख नो अंत थाय छे. माटे कर्म थी प्राप्त थतु सुख अंत वालु छे, परन्तु सिद्ध परमात्मानों ने जे सुख
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थाय छे ते वेदनीय कर्म ना नाश थी थाय छे, अने ते सुख आत्मा ना घर नुं होवा थी अनंत काल पर्यंत रहे छे. ते खुख शाश्वत ने अनन्त होय छे.
मूलम् -
सुखमाश्रितानाम् ।
वद्विश्ववृतान्तसमुत्थनृत्त - प्रेक्षाप्रभूतं सिद्धात्मनां नित्यसुखप्रवर्त्तते, यथानृमापद्भुत नृत्यदर्शिनाम्