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पण संसार ना बनावो थी उत्पन्न थयेल नृत्य जोवाथी शाश्वत एवं आत्मा नुअनन्त सुख थाय छे. । इन्द्रियो विना पण सिद्धों ने अनंत सुख
मूलम्सिद्धषुपूज्यानकिलक्रियेन्द्रियं बुद्धिन्द्रियंनोनचञ्चिनाङ्गम् । अनन्तसौख्यं कथमाप्यते तै-यंज्ञानमेतेषु तदेव सौल्यम् १०
गाथार्थ-हे पूज्यो, सिद्ध भगवंतों ने कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय अने शरीर ना अंग विगेरे नथी छतां तेश्रो अनंत सुख केम मेलवे ? तेप्रोने ज्ञाम एज सुख छे. विवेचन- संसारी जीव ने जे सुख नो अनुभव थाय छे ते चक्षु आदि ज्ञानेन्द्रिय, हाथ आदि कर्मेन्द्रिय अने मुख आदि शरीर ना अवयवो द्वाराज थाय छे. ज्यारे सिद्ध भगवंतो ने चक्षु आदि ज्ञानेन्द्रिय, हाथ अादि कर्मेन्द्रिय अने मुख आदि शरीर ना अवयवो नथी तो सिद्ध भगवंतो ने सुख नो अनुभव केम थाय ? एम शंका थाय ते स्वाभाविक छे. एटले तेनो उत्तर प्रापतां ग्रंथकार श्री जणावे छे के सुख बे प्रकार नु छे. एक शरीर सम्बन्धी अने बीजुआत्मिक. शरीर सम्बन्धी सुख शुभ कर्मो ना योगे उत्पत्र थाय छे. एटलेज संसारी जीव ने इन्द्रियादि द्वारा सुख नो अनुभव थाय छे, परन्तु आत्मिक सुख