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(८३) गाथार्थ जेम विचित्र नाटक जोवाथी मनुष्यो ने सुख थाय छे तेम सिद्ध ना जीवो ने संसार ना बनावो थी उत्पत्र थयेल नृत्य ना जोवा थी शाश्वत सुख थाय छे.
विवेचन- सिद्ध परमात्मामो ना सुख नी उपमा संसार नी कोई पण वस्तु नी साथे घटावी शकाती नथी छतां जेम समुद्र केटलो मोटो छे ते बालक ने समझाववा माटे बे हाथ पहोला करी ‘समुद्र पाटलो मोटो छे' एम समझावाय छे. तेम संसारी जीवों ने आत्मिक वस्तु समझाववा माटे कोई पण संसारी वस्तु ना दृष्टांत द्वारा समझावाय छे. एटला मां सिद्ध नु सुख केवा प्रकार नु होय छे ते समझाववा माटे एक गामड़िया नील नु दृष्टांत प्रापवामां आव्यु छे:
कोई एक नगर मां एक राजा छे. ते घोड़ा नी परीक्षा करवा माटे घोड़ा पर बेसी जंगल तरफ जाय छे, परन्तु घोड़ो वक्रगति वालो होवा थी जेम-जेम घोड़ा ने ऊभो राखवा राजा प्रयत्न करे छे, तेम-तेम घोड़ो एक भयंकर अटवी तरफ चाल्यो जाय छे, एटला मां स्वाभाविक रीते राजा घोड़ा नु मोकड्डु ढीलु मूके छे, त्यां घोड़ो ऊभो रही जाय छे. राजा घोड़ा पर थी नीचे पड़ी जाय छे अने बेभान थई जाय छे, तथा घोड़ो पण वधु थाक ना कारणे मृत्यु पामी जाय छे.