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मूलम्मावोचएतद्धि शरीरजागुरणा, प्रमीयतोऽस्मिन् गतपंचकेघने । दृष्यन्तएतेनहि केचनाश्रिता-स्ततोवपुर्गान गुरणास्तुजीवगाः ७
गाथार्थ- आ बधा गुणो शरीर ना छे, एम न कहेवू कारण के जो शरीर ना गुणो होय तो जीव रहित शरीर मां गुणो केम देखाता नथी ? माटे ए शरीर ना गुणो नथी, परन्तु जीव ना गुणो छे... विवेचन- वादी एम कहे छ के मिथ्यात्व आदि प्रा बधा गुणो जीव ना नथी परन्तु शरीर ना गुणो छे. तेना प्रत्युत्तर मां जणाववा नु के जो मिथ्यात्वादि आ बधा गुणो शरीर ना मानिये तो बाधकता आवे छे, कारण के जो प्रा बधा गुणो शरीरना मानिये तो मरण बाद शरीर तो होय छे, परन्तु शरीर ना गणोता आ बधा गुणो देखाता केम नथी ? तेनु कारण शु ? माटे आ बधा गुणो शरीर ना नथी परन्तु आ बधा गुणो संसारी जीव ना छे. मूलम्संदृश्यमानं पुनरीदृशं वपु-रदृश्य एवैष मवि दधाति चेत् । अरुपिरुपिद्वयसंगमो ह्यसौ, विचार्यमारणःकुरुते न कौतुकम् । गाथार्थ-जो अदृश्यमान एवो जीव दृश्यमान एवा शरीर ने धारण करे छे तो अरूपी अने रूपी ए युगल