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सुख अनंत छे ज्यारे कर्मो नुं सुख अंत वालू छे. सिद्धो ना सुखो मां कारण भूत थई शकता नथी. एटलां कारणोथी सिद्धो निश्चय करीने कर्मो ग्रहण करता नथी.
विवेचन- सिद्ध भगवंतो कया कया कारणो थी कर्मो ग्रहण करता नथी. ते माटे नीचे नां पांच कारणो बताव्यां छे. ( १ ) संसारी आत्मा तैजस कार्मण नाम ना शरीर द्वारा कर्मो ग्रहण करे छे, कारण के तेने अनादि काल भी तैजस कार्मण नाम नु शरीर लागेल छे. परन्तु सिद्ध भगवंतो ने ग्राठक ना क्षय समयेज तैजस कारण नाम नु शरीर नाश पामेल होवा थी तेश्रो शुभ के अशुभ बत्र मां थी एक पण कर्म ग्रहण करता नथी. ( २ ) माणस जो भूख्यो होय तोज खावा नी इच्छा थाय छे परन्तु जे पूर्णं भोजन करी तृप्त थई गयो होय तेने खावानी इच्छा थती नथी, तेम सिद्ध भगवंतो ज्योति, आत्म ज्ञान ने आत्मानंद थी तृप्त थयेल होवाथी तेमने बीजी पौद्गलिक सुख नी इच्छा थती नथी माटे तेस्रो कर्म ग्रहण करता नथी. ( ३ ) काल, स्वभाव, भवितव्यतादि नी प्ररणा थी पर जीव कर्म ग्रहण करे छे परन्तु सिद्ध भगवंतो ने कालदिनी प्रेरणा परण होती नथी तेथी सिद्ध भगवंतो कर्मो ग्रहण करता नथी. (४) संसारी जीव क्रियावान्