________________
(७३)
रूपी द्रव्यो, सिद्ध, धर्मास्ति काय, अधर्मास्ति काय आदि अरूपी द्रव्यो, तथा धर्मास्ति काय, अधर्मास्ति काय अने पुद्गलास्ति काय विगेरे सर्व द्रव्यो धारण करे छे तो अरूपी एवो आत्मा सर्ब रूपी द्रव्यो ने धारण केम न करे ? अर्थात् करेज, एटले आत्मा अने कर्म नो आधार प्राधेय भाव घटी शके छे.
मूलम्मिथ्यात्वदृष्टिभ्रमकर्ममत्सराः, कषायकन्दर्पकलागुणास्त्रयः । क्रिया:समग्राविषयाअनेकधा,किनिषत्तेऽत्रवपुर्गतोऽप्ययम् ६
गाथार्थ- शरीर मां रहेल आत्मा, मिथ्यात्व दृष्टि भ्रान्ति, दोष, कषाय, काम, कला, सत्त्वादि गुणो अने अनेक प्रकार नी समग्रे क्रियानो शुशु धारण नथी करतो ? अर्थात् करेज छे. विवेचन-मिथ्यात्व, द्वेष, कषाय विषय विगेरे मोहनीय कर्म ना भेदो छे. भ्रान्ति ए ज्ञानावरणीय कर्म नो प्रकार छे. कला ए बुद्धि नो विषय छे. सत्त्वादि गुणो पण कर्मनाज प्रकार छे. तेमज कर्मना योगे बीजी अनेक प्रकार नी क्रियानो ए बधु जीवमाँज छे, अर्थात् प्रा बधु जीवे धारण करेल छे, तो आत्मा अने कर्म नो आधार आधेय भाव केम घटी न शके ? अर्थात् जरूर घटी शके छे.