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शके छे, तेम आत्मा अने कर्म नो आधार आधेय भाव घटी शके छे.
मूलम् -
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तदायथा भूतगरणा गुरणाश्च, स्थास्यन्ति लीनाननु कर्तृ नाम्नि । यद्वानभोमूत्तं पिदंगुरोर्लघो- मूंर्त्तस्य चामूत्तिमतोनिरतरम् ४ श्रर्थस्य सर्वस्ययथा विचक्षरणा, श्राधारमाख्यन्नविनश्वरं महत् । कथं तथात्मैष न रूपवानपि रूपीणि सर्वारिंग वहत्यनारतम् ५ गाथार्थ- ते समये जेम भूत पदार्थो अने तेना गुणो जगत कर्त्ता मां लीन थई रहेशे अथवा प्ररूपी एवं आकाश मोटा अने नाना रूपी पदार्थों ने हमेशां धारण करे छे. एटलेज अविनाशी अने मोटु आकाश सर्व पदार्थों नुं आधार भूत कहेलु छे. तो अरूपी एवो आत्मा निरन्तर सर्व रूपी पदार्थों ने केम वहन करे ? विवेचन लौकिक दृष्टि ए पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु अने आकाश ए पांच भूत पदार्थों तरीके मनाय छे. गंध, रस, स्पर्श आदि भूत पदार्थो ना गुण गणाय छे. तेमज सत्त्व एटले जीव विगेरे पण तेना गुण गरणाय छे एम माननार नाम ते कल्पांत काल समये सर्वे भूत पदार्थों ने तेना गुणो ईश्वर मां समाई जाय छे. अथवा अरूपी एवं प्रकाश हमेशां पृथ्वी, पर्वत आदि मोटी वस्तुप्रो घन, वातादि सूक्ष्म वस्तुप्रो, सर्व