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आत्मा ना गुणो छे, माटे आत्मा अने सम्यक् दर्शनादि गुणो नो आधार आधेय भाव घटी शकेछे परन्तु पात्मा अने कर्म ए बबनो आधार प्राधेय केवी रीते घटे ? मूलम्-
.. प्राकण्यंतामुत्तरमस्य विज्ञाः !, कर्मस्वभावादथजीवशक्तेः । गुणाश्रयों द्रव्यमितिप्रवादात्, संसारिजीवस्य गुणस्तुकर्म ॥२ गाथार्थ-हे पंडित पुरुषो ! आनो उत्तर सांगलो. कर्म नो स्वभाव अने जीव नी शक्ति थी तेवा प्रकार नो संजोग थाय छे. गुणो नो प्राश्रय द्रव्य छे एवा तार्किक वचन ना अनुसारे संसारी जीव नो कर्म पण गुण छे. विवेचन-आत्मा अनादि काल थी छे तेम कर्म पण अनादि काल थी छे. ते प्रमाणे प्रात्मा ने कर्मो नो संजोग पण अनादि काल थी छे. शुद्ध आत्म द्रव्य ने कर्मो लागतां नथी, परन्तु आत्मा ने कार्मण नाम नु शरीर अनादि कालथी लागेलुछे अने कार्मण शरीर ना योगेज आत्मा मन, वचन अने कायाना योग नी प्रवृति करता नजीक मां रहेल कर्मो ने पोताना तरफ खेंची ले छे अने पछी जीव कर्म बंध करे छे. माटे कर्म ना स्वभाव ना लीधे अने संसारी जीव नी तेवा प्रकार नी शक्ति ना लीधे आत्मा अने कर्म नो संजोग थाय छे. 'गुणाश्रयो द्रव्यम्' ए ताकिको नु वचन छे.