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(६५) मूलम्सत्यकतिन् ! सूक्ष्मतमानितानि,पश्यन्तिनोचर्मदृशोहिमादृशाः ज्ञानीतुसज्ज्ञान दृशोभृशोदया-त्पश्येद्यपात्रेव निदर्शनंऋणु ३० गाथार्थ- हे पंडित, तारू कथन सत्यछे. कर्मो अत्यन्त सूक्ष्म होवाथी आपणा जेवा चर्म चक्षु वालोरो कर्मो जोई शकता नथी, परन्तु सम्यग् ज्ञान रूपी दृष्टि वाला ज्ञानी पुरुषो कर्मो ने जोई शके छे. तो दृष्टांत सांभल. विवेचन्न-जैन आगमो मां ज्ञान ना पांच प्रकार बताव्या छे-मतिज्ञान, श्र त ज्ञान, अवधि ज्ञानं, मनः पर्याय ज्ञान अने केवल ज्ञान. ए दरेक नो विषय अलग अलग होय छे. मतिज्ञानी पांच इन्द्रिय अने मन द्वारा पोत पोताना क्षयोपशम प्रमाणे द्रव्य अने पर्यायो जागे छे. तेमां इन्द्रिय अने मन नो विषय पण अलग अलग होय छे. सफेद, लाल, पीलो, लीलो अने कालो ए पांच वर्णों ने चक्षु द्वारा जणाय छे. सुगंध अने दुर्गन्ध ए गंधो नाक द्वारा जणाय छे. तीखो, कड़वो तूरो, खाटो अने मधुर ए पांच रसो जीभ द्वारा जणाय छे. ठंड़ो, गरम, चिकाश वालो, लूखो, हलको, भारे, खरबड़ो अने सुवालो ए पाठ स्पर्शो स्पर्शेन्द्रिय द्वारा जणाय छे. सचित, अचित, अने मिश्र ए त्रण प्रकार ना शब्दो कान द्वारा जणाय छे. दरेक पदार्थो नु चिन्त्वन करवू ते मन द्वारा थाय छे. एटले वर्ण, रस, गंध, स्पर्श