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पूजा मन वड़े थाय छे, माटे इन्द्रियो विना पण सद्भाव पूजा थई शके छे. वली ब्रह्मवादी ब्रह्म ने मेलवे छे तेमां पण इन्द्रियोनी जरूर पड़ती नथी, कारण के ब्रह्म ने मेलववा मां ब्रह्म ना ध्यान नी जरूर पड़े छे अर्थात् ब्रह्म ना ध्यान बड़े ब्रह्म मेलवाय, अने ध्यान मन थी थाय छे एटले इन्द्रियो विना पर ब्रह्म वादो शु ब्रह्म ना ध्यान बड़े ब्रह्म ने नथी मेलवतो ? अर्थात् मेलवेज छे मूलम्जीवोऽयमेवकरणैःकरादिभि-दिनैवकर्मारिणसम श्रयत्यलम् । अचिन्त्यशक्त्यानियतिस्वभाव-कालैश्च जात्याच कृतप्रणोदः २८ गाथार्थ- पा जीव भवितव्यता, स्वभाव, काल अने जाति नी प्रेरणा थी अने अचित्य शक्ति वड़े इन्द्रिय अने हाथ विना पण कर्मो ने धारण करे छे. विवेचन-पाटलां दृष्टांतो इन्द्रिय अने हाथ विना पण जीव कर्म ग्रहण करे छे ते बाबत मां बताव्या बाद छेक्टे ग्रंथकार श्री जैन शासन नी मान्यता मुजब केवी रीते इन्द्रिय अने हाथ आदि विना पण कर्मो ग्रहण करे छे ते बतावतां जणावे छे के तैजस कार्मण शरीर वालो पा प्रात्मा तेवा प्रकार नी भवितव्यता, कर्म ग्रहण करवानो स्वभाव, काल पण हेतु रूप होय मनुष्य जन्म आदि जाति नी प्रेरणा अने प्रात्मा नी