________________
पोतानी स्वाभाविक अचिन्त्य शक्ति बड़े इन्द्रिय अने, हाथ आदि विना पण कर्मो धारण करी शके छ अर्थात् . कर्मो धारण करे छे.
जीव साथे लागेलां कर्मों नु अदृश्य पगु मूलम्कर्माणि जीवैकतरप्रदेशे ऽप्यनन्तसङ्क्यानि भवन्ति चेत्तदा । कथंनदृश्यानिहितानिपिण्ड़ी-भूतानिदृष्ट्यानिगदन्तु कोविदाः२६ गाथार्थ- हे विद्वानो, जो आत्मा ना एकेक प्रदेश मां अनंत कर्मो रहेलां छे तो समूह रूप थयेलां कर्मो दृष्टि वड़े केम देखातां नथी ते कहो.. .... विवेचनः-संसार मां जीव ने घणे भागे प्रत्यक्ष नजरे वस्तु जोवानी आदल छे. अने प्रत्यक्ष देखाय त्यारे वस्तु प्रत्येनी श्रद्धा पैदा थाय छे अने ते वस्तु माने छे तेम अहियां कर्मो नजरे प्रत्यक्ष देखातां नथी, तेथी शंका थाय ते स्वाभाविक छे. तेथी संशय थवा थी पूछे के शास्त्र मां कहेल छे के आत्मा ना असंख्यात प्रदेश छे. नाभि स्थाने रहेला पाठ प्रदेशो छोड़ी दरेक प्रात्म प्रदेशे अनंतानंत कर्मो रहेलां छे. जो आत्मा ना एकेक आत्म प्रदेशे अनंत कर्मो लागेला होय तो कर्मो नो आटलो समूह प्रत्यक्ष नज़रे केम देखातो नथी ? आवो संशय थाय छे, माटे हे पंडितो, तमो तेनो उत्तर आपो तेनो उत्तर आगल नी गाथा मां जणावे छे.