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मूलम्ध्यानीपुनबाह्यगतेन्द्रियविना, करोतिकर्माणि यथेप्सितानियत् । जिह्वांविनाध्यायतिमानसंज,शृणोतितंतश्रवसीऋतेतदा २६
गाथार्थ- ध्यानी एवो जीव बाह्य इन्द्रियो विना इच्छित कर्मों करे छे. जेम जीभ विना मानस जाप जपे छे अने कान विना जाप समये सांभले छे. विवेचन- इन्द्रिय विना पण केटलांक कार्यो थई शके छे ते बताववा माटे ग्रंथकार श्री जणावे के ध्यान मां प्रवृत्त थयेल जीव इन्द्रियो विना पण पोताने इच्छित कार्यो करे छे. दाखला तरीके ध्यानी एवो प्रात्मा जीभ विना पण मानसिक जाप जपे छे अने कान विना पण जाप समये सांभले छे. मूलम्विना जलः पुष्य फलश्चदीपः, सद्भावपूजा सफली करोति । ध्यात्वार्थब्रह्मापिचब्रह्मवादी,नब्रह्मतामेषलभेद्विनाखः । २७ गाथार्थ- जल, पुष्प, फल अने दीपक विना पण ध्यानी पुरुष सद्भाव पूजा ने करे छे . ब्रह्मवादी ब्रह्मनु चिन्त्वन करीने इन्द्रिय विना पण शु ब्रह्म ने नथी मेलवतो ? अर्थात् मेलवे छे. विवेचन ध्यानी पुरुष जल, पुष्प, फल अने दीपक विना पण सद्भाव पूजा करे छे. सद्भाव पूजा मां इन्द्रियो नी आवश्यकता होती नथी, कारण के सद्भाव