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श्वासोश्वास पर्याप्ति :- जे शक्ति वडे श्वासोश्वास योग्य पुद्गलो ग्रहण करी श्वासोश्वास रूपे परिणमावे ते श्वासो श्वास पर्याप्ति. भाषा पर्याप्ति :- जेशक्ति वड़े जीवभाषा योग्य पुद्गलो ग्रहण करी भाषा रूपे परिणमावे ते भाषा पर्याप्ति. मनः पर्याप्ति :- जे शक्ति वड़े जीव मन योग्य पुद्गलो ग्रहण करी मन रूपे परिणामावे ते मन पर्याप्ति.
गर्भ मां पर्याप्ति अने प्राण विगेरे नी रचवानु कार्य, सत्वादि गुणो नुधारण, सम्यक् ज्ञान प्रादि गुणो, कषाय, भोग, सद्व्यवहारादि, अहित हितादि नु ज्ञान, रोग अने समान्ध नु धारण करवु विगेरे गर्भ काल थी जीवन पर्यत शरीर मां रहेल जीव, इन्द्रिय अने हाथ विना शुनथी करतो ? अर्थात् इन्द्रिय अने हाथ आदि विना पण जीव ऊपर जणावेल सर्व बाबतो करे छे, तेम इन्द्रिय अने हाथ विना पण जीव कर्म ग्रहण करे छे.
मूलम्यदीदृशोऽपौद्गलिकोऽप्यमूर्तो निराकृतिः सक्रिय एष जीवः । देहस्यमध्येस्थित एक्सर्व-मङ्ग परिव्याप्य करोतिकत्यम् ।।२१ गाथार्थ- पूर्वे कहेल स्वरूपवालो प्राजीव अपौद्गलिक, अमूर्त, निराकार अने क्रियावालो होवा छतां देहनी अंदर रहेलोज सर्व अंग मां व्यापी ने क्रिया करे छे.