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नो नाश थाय छे. माटे इन्द्रिय विना पण जीव कर्मो ग्रहण करी शके छे.
मूलम्तथानिजात्मन्यपि पश्यतोऽत्र, सम्मील्यचेतः परिकल्प्यसुस्थम् । उत्पत्तिक लादवसानस मा-मात्मासृजेत्कार्मणतंजसाभ्याम् १५ गाथार्थ- तेवीज रीते नू अहीं अांखो खोली ने अने मन स्वस्थ बनावी ने जूए तो ध्यान पावशे के आत्मा उत्पत्ति कालथी मांडी अंत समय सुधी तैजस कार्मण वड़े सृजन करे छे. विवेचन-जीव ज्यारे गर्भ मां आवे छे त्यारे तेने शरीर अने इन्द्रिय अादि होतां नथी तो आहारादि ग्रहण रुप क्रिया केवी रीते करे छे ? या बाबत मां तू अांखो खोली अने मन स्वस्थ करी विचारे तो मालूम पड़शे के उत्पत्ति समय थी मांडी अने अंत समय सुधी जीव जे पाहारादि ग्रहण रूप क्रिया करे छे ते सर्व तैजस अने कार्मण शरीर वड़ेज करे छे. तो जेम इन्द्रिय विना आहारादि जीव ग्रहण करे छे तेवीज रीते इन्द्रिय विना पण जीव कर्म ग्रहण करी शके छे. मूलम्गर्भस्थितः शुक्ररजोन्तरागतो यथोचिताहार विधानतोद्रुतम् । धातू श्वसर्वानपिसर्वथास्वय-मात्माविधत्तेऽत्रविनाक्षवीयंतः १६