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(५२) थाय छे. परन्तु कर्मो न तो स्मरण थतु नथी. माटे स्वप्न नु दृष्टांत बराबर घटतु नथी. तेना प्रत्युतर मां जणाववानु के जेम कोई स्वप्नों न स्मरण थाय छ तेम ज्ञान विशेष थी विशिष्ट ज्ञानी पुरुषो ने कर्मो नु पण स्मरण थाय छे. माटे दृष्टांत बराबर घटे छे एटले जीव जेम इन्द्रिय विना मन थी बधी क्रियानो करे छे तेम इन्द्रिय विना पण जीव को ग्रहण करे छे
मूलम्स्यादङ्गिनः संशय एव नात्र, व्यर्थीमवत्स्वप्न मरस्य जन्तोः । स्वप्नोयथाकेवलिनस्तथः स्ति, कर्मग्रहस्तक्षरणनःशनो यत् ।१४
गाथाथ-जेम प्राणी ने स्वप्नो नो समूह व्यर्थ थाय छे या विषय मां प्राणी ने संशय नथी. तेम केवली भगवंत ने पण जे समये कर्म बंध थाय छे तेज समये कर्म नो नाश पण थाय छे. विवेचन- हजू वादी शंका करे छे के स्वप्न सम्बन्धी आपेल दृष्टांत बराबर घटतु नथी, कारण के प्राणी ने जे स्वप्नो आवे छे ते स्वप्नो नो समूह जागृत थया बाद तरतज नाश पामी जाय छे. या बाबत मां कोई पण प्राणी ने संशय नथी, परन्तु कर्मो तो नाश पामतां नथी. तो जवाब मां जणाववानु के जेम स्वप्नो नो समूह तात्कालिक नाश पामे छे, तेम केवली भगवंतो ने पण जे समये कर्म नो बंध थाय छे तेज समये कर्म