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बल-वीर्य प्रापे छे तो अनंत शक्ति वालो प्रात्मा पोताना कर्म ग्रहण करवानी स्वाभाविक शक्तिना लीधे केम कर्मो ग्रहण न करी शके ? अर्थात् जरुर ग्रहण करे छे. मूलम्वनस्पतिनामपिवायथाहृति-र्यत्रालिकेऽर्यादिषुदृष्यतेऽपिच । यद्वाघ किलवस्तुसर्व, सड़गृहनीरस्वयमादितस्यात् ।। ६ गाथार्थ- जेम वनस्पतियो नो आहार नालियेर आदि मां देखाय छे, घणुशु कहिये ? सर्व वस्तु पाणीने संग्रही ने पोता नी मेले भोनी थाय छे. विवेचन- स्वाभाविक शक्ति वस्तु मां केवीरीते रहेल छे, ते ग्रंथकार श्री दृष्टांत द्वारा बतावी ते विषय ने विशेष पुष्ट करे छे.
दरेक वनस्पति ना मूलमांज पाणी नु सिंचन थाय छे, परन्तु पाणी नालीयेर मां पण जणाय छे: तो मूल मां सिंचायेल पाणी ने वृक्षना टोच सुधी कोण पहोचाड़े छे ? एटले नक्की थाय छे के वनस्पति पोतानी स्वाभाविक शक्ति थी पाणी ने ग्रहण करी ऊचे टोच सुधी पहोचाड़वानु कामकरे छे. वधारेशु कहिये ? बधी वनस्पतियो एज रीते पाणी ने संग्रही ने पोतेज दरेक वस्तु ने भीनी राखे छे. तेवीज रीते अात्मा पण पोताना कर्म ग्रहण कर वाना स्वभाव ना लीधे कर्म ग्रहण करे छे.