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(४८) नथी, परन्तु पोताना मूल स्वभाव पर प्रावी जाय छे. जेमके पाणी गरम करवा छतां पण पाछु शीतल थई जाय छे. तेम लोह चुम्बक पोताना लोढाना आकर्षण करवाना स्वभाव ना कारणे लोढ़ाने छोडो वीजी धातुप्रो ने ग्रहण करतो नथी.
मूलम्अप्येवमात्मापरपुद्गलोत्करान्,विहायगृह्णातिहिकर्मपुद्गलान् । याहक्षयादृक्ष भविष्यदायतिः,तादृक्ष सम्प्रेरणपारवश्यतः ।। गाथार्थ- ए प्रमाणे जेवा प्रकार नो भविष्य काल होय तेवा प्रकार नी प्रेरणा ना वश थी अने प्रात्मा ना ग्रहण ना स्वभाव थी पर पुद्गलो छोड़ी कर्म पुद्गलो ने जीव ग्रहण करे छे. विवेचन चौद राज लोक मां आठ प्रकार नां पुद्गलो रहेला छे अर्थात पुद्गलो नी आठ प्रकार नी जाति छे. जैन पारिभाषिक शब्दो मां जाति ने वर्गणा कहे छ(१) प्रौदारिक वर्गणा (२) वैक्रिय वर्गणा (३) आहारक वर्गणा (४) तैजस वर्गणा (५) श्वासोश्वास वर्गणा (६) भाषा वर्गणा (७) मनः वर्गणा (८) कार्मण वर्गणा. जेना द्वारा औदारिकशरीर बनावीशकायते औदारिकवर्गणाजेना द्वारा वैक्रिय शरीर बनावी शकाय ते वैक्रिय वर्गणा, जेना द्वारा प्राहारक शरीर बनावी शकाय ते आहारक वर्गणा, शरीर मां जे गरमी रहेली ते तैजस शरीर अने एवु