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पारा ना रस ने ग्रहण करे छे. तेम इन्द्रियादि रहित एवो प्रात्मा पण तेवा प्रकार ना कर्म ग्रहण करवाना पोताना स्वभाव ना लीधे शुभाशुभ कर्मो ग्रहण करे छे. मूलम्दुग्धादि पुनीर शोषी सशब्दवेधी बल शुक्रदश्च । सूतोऽपिचैतत्कुरुतेनिरक्षोजीमस्तुशक्तोनकरोतिकिकिम् ५। गाथार्थ-अचेतन एवो पारो पण दुध आदि पिये छे. तरवाना रस नु शोषण करे छे, लक्ष्य नो वेघ करे छ बल अने वीर्य ने आपे छे, तो शक्ति वालो एवो जिव शु-शुन करे ? अर्थात बधुज करे छे. विवेचन-शक्ति बे प्रकार नी छे-एक सामान्य शक्ति अने बीजी वोग, उत्साह, बल, वीर्य एवी विशिष्ट शक्ति सामान्य शक्ति तो जड़ एवा दरेक पदार्थो मां पण रहेली होय छे. पुद्गल एक समय मां चौद रोज लोक ना एक छेड़ाथी बीजा छेड़ा सुधी जई शके छे. ते सिवाय बीजी पण अनेक शक्तियो पुद्गल मय एवा जड़ पदार्थो मां रहेली होय छे परन्तु ते बधी शक्ति प्रो चेतन द्रव्य वगर प्रगट थई शक्ति नथी. जीव स्वयं पोताना उद्यम द्वारा शक्तियो प्रगट करी शके छे. सामान्य शक्ति वालो अने अचेतन एवो पारो पण दूध आदि नु पान करे छे, तरवाना पाणी नु शोषण करे छे, शब्दानु सारे लक्ष्य नो वेध करवानु सामर्थ्य धरावे छे अने