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ने हाथ विना पण पूजा ग्रहण करे छे, अने हाथ विना पण जगत ना जीवो नो उद्धार करे छे, तेम इन्द्रिय अने हाथ विना आत्मा नी कर्म ग्रहण करवानी शक्ति ना योगे जीव कर्म ग्रहण करे छे. मूलम्पापं हरत्याशु कृतस्वकर्य-दनन्तशक्तेः सहजात्तथाऽऽत्या । लोके यथावा गुड़को रसस्य,सिद्धो निरक्षेन्द्रिय पारिणमुक्तिः । ४ गाथार्थ-जेम ईश्वर पोताना भक्तो ना पापो ने पोतानी स्वाभाविक अनंत शक्ति थी दूर करे छे अथवा जेम लोक मां इन्द्रिय अने हाथ रहित एवी अचेतन गोली तेवा प्रकारनी औषधि थी संस्कार पामेल होवाथी पारा ना रसने ग्रहण करे छे, तेम इन्द्रिय अने हाथ रहित एवो आत्मा पोताना तेवा प्रकार ना स्वभावथी कर्म ग्रहण करे छे. विवेचन- हवे तेज वस्तूने दृष्टांत द्वारा दृढ करतां जणावे छे के जेम इन्द्रिय अने हाथ वगर पण आत्मा पोताना कर्म ग्रहण करवाना स्वभाव ना लीधे शुभाशुभ कर्मो पण ग्रहण करे छे.
चेतन वस्तु नु दृष्टांत प्राप्या बाद हवे तेज वस्तु ने अचेतन वस्तुनु दृष्टांत आपी दृढ़ करता जरणावे छे के अचेतन एवी गोली इन्द्रियादि नहीं होवा छतां पण ते प्रकारनी औषधि थी संस्कार पामेल होवाना कारणे