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होवा थी आत्मा कर्म ग्रहण करे छे.
मूलम्यथेन्द्रियाक्कार विजिलोऽयं, कशृिणोत्येव निजाङ्गिजापम् भक्त निरीक्ष्याऽथविलातिपूजा,पारिणविनायोद्धरतीहमक्तान् ।३ गाथार्थ-इन्द्रिय अने आकार रहित जगत् कर्ता परमेश्वर पोताना भक्त ना जाप ने सांभले छे, भक्त ने जोई पूजा ग्रहण करे छे अने अहियां एटले संसार मां हाथ विना भक्तो नो उद्धार पण करे छे. विवेचन- जैन सिद्धान्त मुजब जड़ अने चैतन्य रूप आ जगत ईश्वरे बनाव्यु नथी परन्तु स्वभावेज जगत अनादि काल थी छे. सुख अने दुःख पण ईश्वर आपतो नथी परन्तु जीव पोते उपार्ज़न करेल शुभाशुभ कर्मो ना उदये सुख-दुःख पामे छे. निरंजन, वीतराग अने संसार थी मुक्त बनेल ईश्वर ने जगत बनाववानु कोई प्रयोज़नपण नथी, माटे जगत नो कर्ता ईश्वर नथी. प्रावी जैन शासन नी मान्यता छे. परन्तु जगत मां एक एवी मान्यता पण प्रवर्ते छे के पा जगत ब्रह्मा बनावे छे, विष्णु जगतनु रक्षण करेछे अने महादेव जगतनो नाश करे छे. एवी मान्यता वाला एटले ईश्वर ने जगत-कर्ता तरीके माननार ने ग्रंथकार श्री प्रत्युत्तर प्रापे के के इन्द्रिय अने हाथ रहित एवो ईश्वर जेम कान वगर भक्तोना जाप ने सांभले छे, चक्षु वगर भक्त ने जोई