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गाथार्थ- हे स्वामि, इन्द्रिय अने प्राकार रहित एवो जीव कया कारण थी कर्म ग्रहण करे ? कारण के लोक पण लेवा योग्य वस्तु प्रथम जोई ने पछी हाथ आदि वडे ग्रहण करे छे. विवेचन- जगत ना जीवो नो स्वभाव एवो छे के तेम नी दृष्टि हमेशा प्रत्यक्ष प्रमाण थी जोवा ने टेवायेली छे. तेमां पण संसार व्यवहार मां जे रीते जोवाने टेवायेल होय ते प्रमाणे जीवो जुए छे अने तेनी विरुद्ध ज्यारे कोई पण बाबत आवे एटले शंका पैदा थाय ते स्वाभाविक छे. अहियां पण तेज बाबत बतावे छे के माणस कोई पण वस्तु लेवी होय त्यारे लेवा योग्य वस्तु प्रथम प्रांख थी जुए छे अने पछी हाथ वड़े ग्रहणकरे छे. परन्तु प्रात्मा ने इन्द्रिय नथी अने हाथपण नथी. तो इन्द्रिय बिना आत्मा जोई पण शकतो नथी. एवो प्रश्न जिज्ञासु ने थाय ते स्वाभाविक छे तेनो उत्तर आगल नी गाथामां जणावाशो
मूलम्प्रात्मातुनेहक घटतेनचैतत् सत्यं विनाऽपीन्द्रियतोऽप्य यात्मा । भाव्याश्रितं कर्म समाददीत,शक्तेःस्वभावत् चऋणुस्वरुपं ।।२ गाथार्थ- आत्मा तेवा स्वरुप वालो नथी एटले ते वस्तु घटी शकती नथी. ते वस्तु सत्यछे परन्तु इन्द्रिय विना पण आत्मा भविष्य काल मां तेवा प्रकार नु कर्म भोगववानुहोवाथी तथा तेवाप्रकारनी शक्तिना स्वभाव