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परण जीव कर्म ग्रहरण करवानो तेनो स्वभाव होवाथी शुभा शुभ कर्मो ग्रहण करे छे.
मूलम्
कालात्मभावादिनियोजिता न्यहो, स्वभावशक्तेश्चशुभाशुमानियत् कर्मारिणसामीप्यसमाश्रितान्ययमात्माऽपि गृह्णातितथाऽविचारितम् गाथार्थ - विचार विना परण जीव काल, स्वभाव अने भवितव्यतादिनी प्रेरणा थी पोताना कर्म ग्रहण करवाना स्वभाव नी शक्ति थी नजीक मां रहेल शुभाशुभ कर्मोग्रहरण करे छे.
विवेचन स्वभाव, काल, कर्म, भवितव्यता ने उद्यम ए पांचे कारण मलवा थी कार्य नी उत्पत्ति थाय छे. कोई वखत कोई कारण, तो कोई वखत बीजो कारण मुख्य होय छे. परन्तु बीजां चारे कारणो गौण पणे प्रव श्य होय छे. जीवद्वारा विचार विना पण शुभाशुभ कर्मों ग्रहण करवामां बीजां काल, कर्म, भवितव्यता ने उद्यम ए कारणो नी साथे जीव नो कर्म ग्रहण करवानो स्वभाव मुख्य कारण रूप छे.
॥ अथ तृतीयोऽधिकारः ॥
जीव नुं इन्द्रिय अने हाथ विना परण कर्म ग्रहण मूलम्
स्वामिशनाकारतया हि जीवों, निरिन्द्रियः केन च लातिकर्म । निरीक्ष्य पूर्व तत श्रात्मलेय, पाण्यादिना न्यावदते पुमांसः | १|