________________
(३७)
जे वैक्रिय शरीर बनावे ते अने वायु काय जे वैक्रिय शरीर बनावे ते उत्तर वैक्रिय शरीर. चौद पूर्वियो ज्यारे पोताने जैन तत्व सम्बन्धी कोई पण प्रकार नो संशय थाय त्यारे तेना निवारण माटे अथवा समवसरण
आदि नी ऋद्धि जोवा माटे जे एक चूड़ा हाथ प्रमाण आहारक लब्धि द्वारा जे शरीर बनावे ते आहारक शरीर. शरीर मां रहेली जे गरमी के आहार पचाववामां उपयोगी बने छे ते तैजस शरीर. अने जेना द्वारा जीव कर्म ग्रहण करे छे ते कार्मण शरीर .
औदारिक अने वैक्रिय शरीर ते ते भव पूरताज होय छे. उत्तर वैक्रिय अने आहारक शरीर कारण वशात् बनावे त्यारेज होय छे. तैजस अने कार्मण शरीर आत्मा नी साथे अनादि काल थी रहेलांज छे. ए बन्ने शरीरो प्रात्मा ज्यारे कर्म थी मुक्त बने त्यारेज अलग पडे छे . जीव ज्यारे कोई पण प्रवृत्ति वारंवार करे छे त्यारे ते प्रवृत्ति ना योगे वारंवार तेवा संस्कार पड़वाथी ते प्रवृत्ति जीवना स्वभाव रूप बनी जाय छे . तेम अही पणे संसारी आत्मा अनादि काल थी संसार मां राग-द्वेष ना योगे कार्मण शरीर ना कारणे कर्म बंध करे छे . कर्म ना बंध योगे संसार मां जन्म, जीवन अने मृत्यु रूप भव करवा पडे छे. वली कर्म बंध करे छे अने वली पाछा भवो करे छे . आम कर्म बंध नी