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पण रोग ना पर वशपण थी प्रकृति वश बनी कुपथ्य नु सेवन करे छे. तेम जीव सुख नो अभिलाषी होवा छतां अने अशुभ कर्म नुपण दुःख होय छे एम जाणवा छतां पण भवितव्यतादि ना योगे जीव अशुभ कर्मो पण ग्रहण करे छे .
ज्ञान विना पण जीवों नु कर्म ग्रहण मूलम्एवं हि कर्माण्य सुमान् विलाति शुभाशुभानि प्रविदन्नवश्यम् । जीवस्यकर्म ग्रहणेस्वभावो, ज्ञानं विनाऽप्यस्तिनिदर्शनंयत् ।। गाथार्थ- ए प्रमाणे जाणतो छतो पण जीव अवश्य शुभाशुभ कर्मो ने ग्रहण करे छे. ज्ञान विना पण कर्म ग्रहण मां जीवनो स्वभाव कारण भूत छे ते दृष्टान्त थी बतावाशे . . विवेचन नागमो मां पांच प्रकार नां शरीर बतावेल छे. औदारिक, वैक्रिय, आहारक तैजस अने कार्मण. मनुष्य अने तिर्यच नो जे शरीर देखाय छे ते औदारिक देव अने नारको नु शरीर ते बैक्रिय. वैक्रिय शरीर ना पण बे भेद-मूल बैक्रिय शरीर अने उत्तर वैक्रिय शरीर. देवप्रने नारको नां भव धारणीय जे शरीर ते मूल वैक्रिय शरीर अने तेश्रो कारणवशात् जे नवु शरीर बनावे ते, बिक्रिय लब्धिधारक मनुष्य अने तिर्यचो वैक्रिय लब्धि द्वारा