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परंपरा अनादि काल थी आत्मा नी चालू होवाथी आत्मानो कार्मण शरीर ना योगे कर्म ग्रहण करवानो स्वभाव थई गयो छे. कार्मण शरीर ना योगेज श्रात्मा संसारी छे अने कर्म ना वियोगे आत्मा परमात्मा बने छे. माटे जाणतां छतां पण जीव शुभाशुभ कर्मो ग्रहण करे छे. तेमां जीवनो कर्मग्रहण नो स्वभावज कारण भूत छे. कर्म ग्रहण मां जीवनो तेवा प्रकार नो स्वभाव होवाथी ज्ञान विना पण जीव शुभाशुभ कर्म ग्रहण करे छे ते दृष्टांत द्वारा आगलनी गाथाओ मां बराबर समझावाशे. मूलम् -
यथैवलोके किल चुम्बकोऽप्ययं, संयोजकैर्योजितमंजसा भृशम् । सारंमतथाऽसारमयोऽविचारितं गृह्णातियेनाव्यवधान भात्मन् । गाथार्थ- जेम लोकमां लोहचुम्बक मूकनार वड़े प्रांतरा रहित मूकायेल लोह चुम्बक नाम नो पत्थर सार वस्तु अथवा असार वस्तु ने विचार कर्या वगर जल्दी निरंतर ग्रहण करे छे.
विवेचन लोहचुम्बक नामना पत्थर ने कई वस्तु सारी छे ने कई वस्तु खराब छे तेनुं ज्ञान होतु नथी. छतां पण जो कोई माणस लोहचुम्बक नामना पत्थर ने सारी अथवा खोटी वस्तु नी नजीक मूके तो लोह चुम्बक नो ते बस्तु ने ग्रहण करवानो स्वभाव होवाथी ते सारी अथवा खोटी वस्तु ने पोतानी तरफ खेचे छे. तेम ज्ञान विना