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गाथार्थ- भिक्षु, बन्दी अने ऋषि स्निग्ध अने रूक्ष भिक्षा जाणवा छतां खाय छे. युद्ध मां गयेल शूरवीर जाणता छतां पण शत्रु अने मित्र ने हणे छे . विवेचन- भिक्षु अने बन्दी एटले भाट, चारण आ आहार रस वालो अने प्रा आहार नीरस छे एम जाणवा छतां पण परतन्त्रता ना योगे बन्ने प्रकार ना आहार ने खाय छे. ऋषि पण रसवाला अने नीरस आहार ने जाणवा छतां सम भावना योगे बन्ने बन्ने प्रकार ना आहार ने खाय छे अने लड़ाई मां गयेल शूरवीर पण श्रा मित्र छे, अने पा शत्रु छे एम जाणवा छतां पण सेनापति नी आज्ञा नी परवशता ना कारगे बन्ने ने हो छे. तेम जाणवा छतां पण जीव भवितव्यता ना योगे शुभाशुभ बन्ने कर्मो ग्रहण करे छे . मूलम्रोगी यथा वा निजरोग शान्ति-मिच्छत्रपथ्यं ह्यपि सेवतेऽसौ। रोगाभिभूतत्ववशादपायं. जानन्त्वयाविन पात्मगामिनम् । गाथार्थ- पोताना रोग नी शान्ति नी इच्छा वालो रोगी कुपथ्य ना योगे थता कष्ट ने जाणवा छतां पण रोग नी परवशता थी कुपथ्य ने खाय छे . विवेचन रोगी ने पोतानो रोग जल्दी नाश पामे एवी इच्छा अवश्य होय छे अने शरीर ने प्रतिकूल खोराक लेंवा थी रोग नी वृद्धि थांय छे एम जाणवा छतां