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जड़ पदार्थो चेतन एवा जीव नो स्वयं श्राश्रयं लेवाने
समर्थ नथी.
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तमो कहेशो के जड़ एवा कर्मों जीव नो स्वयं आश्रय लेवाने समर्थ न होवा थी जीव नो आश्रय लेता नथी परन्तु जीव स्वयं शुभाशुभ कर्मों ग्रहण करे छे. तमारी मान्यता मुजब जो जीव स्वयं शुभाशुभ कर्मों ग्रहण करे छे तो जीव स्वयं शुभ कर्मो ग्रहण करे ते बाबत तो मानी शकाय परन्तु ज्ञानी एवो आत्मा स्वयं अशुभ कर्मों केम ग्रहण करे ? प्रावो प्रश्न थाय ते स्वाभाविक छे . तेनो प्रत्युत्तर ग्रन्थकार श्री आगल नी गाथा मां आपे छे.
मूलम् -
को नाम विद्वानशुम हि वस्तु, गृह्णाति मत्वा किलयः स्वतन्त्रः । सत्यं विजानन्नपि भाविकताहक् काल। दिनोदादशुभं हि लाति |३
गाथार्थ - विद्वान् अने स्वतन्त्र एवो आत्मा जाणी ने अशुभ कर्मों ने केम ग्रहण करे ? कर्म ना विपाक ने जाणवा छतां पण भवितव्यता अने कालादि ना प्रेरणा थी अशुभ कर्मो पण जीव ग्रहण करे छे. विवेचन - संसार मां अभयदान प्रने सुपात्र दान विगेरे दानादि अने जिनेश्वर देवना दर्शन-पूजन, भक्ति आदि धर्म क्रिया द्वारा शुभ कर्मों बांधवाथो देव, देवेन्द्र,