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१७ वर्षसे पहले
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पाखंडी जाल फैला रखे हैं। बाकी कुछ भी नही है । यदि धर्मपालन करनेका सृष्टिका स्वाभाविक नियम होता तो सारी सृष्टिमे एक ही धर्मं क्यो न होता ? ऐसी-ऐसी तरगोसे में केवल नास्तिक हो गया । ससारी शृगारको ही मैने मोक्ष ठहरा दिया । न पाप है और न पुण्य है, न धर्म है और न कम है, न स्वर्ग है और न नरक है, ये सव पाखड है । जन्मका कारण मात्र स्त्रीपुरुषका सयोग है । और जैसे जीर्ण वस्त्र कालक्रमसे नाशको प्राप्त होता है, वैसे यह काया धीरे-धीरे क्षीण होकर अतमे निष्प्राण होकर नष्ट हो जाती है । बाकी सब मिथ्या है | इस प्रकार मेरे अत करणमे दृढ हो जानेसे मुझे जैसा रुचा, जैसा अच्छा लगा, जैसा रास आया वैसा करने लगा । अनीतिके आचरण करने लगा । बेचारी दीन प्रजाको पीड़ित करनेमे मैने किसी भी प्रकारकी कसर नही रखी । शीलवती सुन्दरियोका शीलभग कराकर मैने हाहाकार मचानेमे किसी भी प्रकारकी कसर नही छोड़ी । सज्जनोको दडित करनेमे, सतोको सतानेमे और दुर्जनोको सुख देनेमे मैंने इतने पाप किये है कि किसी भी प्रकारको न्यूनता नही रहने दी। मै मानता हूँ कि मैंने इतने पाप किये है कि उन पापोका एक प्रबल पर्वत खड़ा किया जाये तो वह मेरु पर्वतसे भी सवाया हो । यह सब होनेका कारण मात्र धूर्त धर्माचार्य थे । ऐसीकी ऐसी मेरी चाडालमति अभी तक रही है । मात्र अद्भुत कौतुक हुआ कि जिससे मुझमे शुद्ध आस्तिकता आ गयी । अब मै यह कौतुक आपके समक्ष निवेदन करता हूँ
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मै उज्जयिनी नगरीका अधिपति हूँ । मेरा नाम चन्द्रसिंह है । विशेषत दयालुओका दिल दुखाने के लिये मै प्रबल दलके साथ शिकारके लिये निकला था । एक रक हिरनके पीछे दौडते हुए में सैन्य से बिछुड़ गया। और उस हिरनके पीछे अपने घोडेको दौडाता दौडाता इस तरफ निकल पडा । अपनी जान बचानेकी किसे इच्छा न हो ? और वैसा करनेके लिये उस बेचारे हिरनने दौडनेमे कुछ भी कसर नही रखी । परन्तु इस पापी प्राणीने अपना जुल्म गुजारनेके लिये उस बेचारे हिरनके पीछे घोडा दौडाकर उसके नजदीक आनेमे कुछ कम प्रयास नही किया । आखिर उस हिरनको इस बागमे प्रवेश करते हुए देखकर मैने धनुष पर बाण चढा कर छोड़ दिया । उस समय मेरे पापी अन्त करणमे लेशमात्र भी दयादेवीका अश न था । सारी दुनियाके धीवरो और चाण्डालोका सरदार मैं ही न होऊँ, ऐसा मेरा कलेजा क्रूरावेशमे बॉसो उछल रहा था। मैंने ताककर मारा हुआ तीर व्यर्थ जानेसे मुझे दुगुना पापावेश आ गया । इस लिये मैंने अपने घोडेको एडी मार कर इस तरफ खूब दौडाया । दोडाते - दौडाते ज्यो ही इस सामनेवाली झाडीके गहरे मध्य भागमे आया त्यो ही घोडा ठोकर खाकर लड़खडाया । लड़खडानेके साथ वह चौक गया । और चौकते ही खड़ा रह गया । जैसे ही घोडा लडखडाया था वैसे ही मेरा एक पैर एक ओर की रकाब पर और दूसरा पैर नीचे भूमिसे एक बित्ता दूर लटक रहा था । म्यानमेसे चमकती तलवार भी निकल पडी थी । जिससे यदि में घोडे पर चढने जाऊँ तो वह तेज तलवार मेरे गलेके आर-पार होनेमे एक पलकी भी देर करनेवाली न थी । और नीचे जहाँ दृष्टि करके देखता हूँ वहाँ एक काला एव भयकर नाग नज़र आया । मुझ जैसे पापीका प्राण लेनेके लिये ही अवतरित उस काले नागको देखकर मेरा कलेजा काँप उठा। मेरा अग-अग थरथराने लगा । मेरी छाती धडकने लगी । मेरी जिन्दगी अव पूरी हो जायेगी । हाय । अब पूरी हो जायेगी । ऐसा भय मुझे लगा । हे भगवान् | ऊपर कहे अनुसार, उम समय में न तो नीचे उतर सकता था और न घोडे पर चढ सकता था । इसीलिये अब मैं कोई उपाय खोजनेमे निमग्न हुआ | परन्तु निरर्थक | केवल व्यर्थ और वेकार || धीरे से आगे खिसक कर रास्ता लूं, ऐसा विचार करके मैं ज्यो ही दृष्टि उठाकर सामने देखता हूँ त्यो ही वहाँ एक विकराल सिंहराज नजर आया। रे । अव तो मैं जाडेकी ठडसे भी सौगुना थर्राने लग गया । और फिर विचारमे पड गया, 'खिसक कर पीछे मुडू तो कैसा ?" ऐसा लगा, वहाँ तो उस तरफ घोडेकी पीठ पर नगी पौनी तलवार देखी । इसलिये यहाँ अब मेरे विचार तो पूरे हो चुके । जहाँ देखेँ वहाँ मौत । फिर विचार किम कामका ? चारो दिशाओमे मौतने अपना जबरदस्त पहरा बिठा दिया । हे महामुनिराज । ऐसा चमत्कारिक परन्तु भयकर दृश्य देखकर मुझे
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