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प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० ३ अलोकादि चरमाचरमगताल्पवहुत्वनिरूपणम् १०३ अचरमान्तप्रदेशाश्च द्वयेऽपि विशेषाधिकाः, लोकालोकस्य खलु भदन्त ! अचरमस्य च चरमाणाञ्च चरमान्तप्रदेशानाश्च अचरमान्तप्रदेशानाञ्च द्रव्यार्थतया प्रदेशार्थतया द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम! सर्वस्तोकम् लोकालोकस्य द्रव्यार्थतया एकमेकम् अचरम, लोकस्य चरमाणि असंख्येयगुणानि, अलोकस्य चरमाणि विशेषाधिकानि, लोकस्य च अलोकस्य च अचरमं च चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, प्रदेशार्थतया सर्वस्तोकाः लोकस्य चरमान्तप्रदेशाः, अलोकस्य चरमान्तप्र
अनंतगुणा) अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणा हैं (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया) चरमान्तप्रदेश और अरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं।
(लोगालोगस्सणं भंते ! अचरमस्ल य, चरमाण य, चरमंतपएसाण य, अचरमंतपएसाण य) हे भगवन् ! लोकालोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों
और अचरमान्तप्रदेशों में (दवट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा (पएसट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा (दवट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (सव्वत्थोवे) सर्व से कम (लोगालोगस्स) लोकालोक के (दव्वट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा से (एगमेगे अचरमे) एक-एक अचरम है (लोगस्स चरमाइं असंखेज्जगुणाई) लोक के चरम असंख्यातगुणा हैं (अलोगस्स चरमाइं विसेसाहियाई) अलोक के चरम विशेषाधिक हैं, (लोगस्स य अलोगस्स य अचरमं य चरमाणि य) लोक और अलोक का अचरम
और चरमाणि (दोवि) दोनों (विलेसाहियाई) विशेषाधिक हैं (पएसट्टयाए सम्वत्थोवा लोगस्स चरसंतपदेसा) प्रदेशों की अपेक्षा से सब से कम लोक के छे (अचरमंतपएसा अणतगुणा) मयभान्त प्रदेश मनन्त छ (चरमत एसा य अचरमतपदेसा य दोवि विसेसाहिया) य२मान्त प्रदेश मने मयरमान्त प्रदेश मन्न विशेषाधि छ
(लोगालोगस्स ण भंते ! अचरमस्स य चरमाण य- चरमंतपएसाण. य, अचरमंतपएसाण य) भगवन् ! asiसना अन्य२भ, यरमी, यरमान्त प्रश। मन मन्यमान्त प्रशामा (व्वयाए) द्रव्यनी अपेक्षाये (पएसट्टयाए) प्रशानी अपेक्षाये (दव्वट्रपएस दृयाए) द्र०य भने प्रदेशानी मपेक्षा (कयरे कयरे हितो) आय होनाथी (अप्पा वा वहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) भक्ष्य, घ, तुल्य अथवा विशेषाधि४ छे ? (गोयमा !) उ गौतम । (सव्वत्थोवे) माथी म (लोगालोगस्स) alesना (दव्वट्टयाए) द्रव्यनी अपेक्षाथी (एगमेगे अचरमे) मे ४ भयरम छे (लोंगस्स चरमाइं असंखेज्जगुणाई) सोन॥ २२म असभ्यात गए। छ (अलोगस्स चरमाई विसेसाहियाई) मा ५२म विशेषाधि: (लोगस्स य अलोगरस य अचरमय चरमाणि य) ४ अने माना अ५२५ मन यरमाणु (दोवि) मन्न (विसेसाहियाइ) विशे मे-पएसट्टयाए सव्वत्योवा लोगस्स