Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 826
________________ - dee महापनाने प्रयोगगतिः, एवम्-यथा प्रयोगो शणितः तथा पापि भणितच्या यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिः, जीवानां भदन्त ! कतिविधा प्रयोगगतिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ? पञ्चदशविधा प्रज्ञप्ता, वद्यथा--सत्यमनःप्रयोगगतिः, यावत्-कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिः, नैरयिकाणां भदन्त ! फतिविधा प्रयोगगतिः प्रज्ञता ? गौतम ! एकादश विधा प्रज्ञता, तद्यथा-सत्यमनः प्रयोगगतिः, एवम् उपयुज्य यस्य यतिविश तस्य ततिविधा भणितव्या यावद् वैमानिकानाम्, जीवानां (किंत पोगगती ?) प्रयोगगति के कितने भेद हैं ?. (पओगगती पण्णरसविहा पण्णत्ता) प्रयोगगति पन्द्रह प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (सच्चमणप्पओगगती) लत्यमनप्रयोगपति (एवं जहा पओगो भणितो) इस प्रकार जैसे प्रयोग के खेद कहे (तहा एलाविभाणितव्या) इसी प्रकार यह अर्थात् गति के भेद भी कहने चाहिए (जाब कम्मगलरीरलायओगगती) यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति ।। . (जीवाणं भंते ! कतिविहा पओगगली पण्णता ?) हे भावन ! जीवों की कितने प्रकार की प्रयोगगति कही है ? (गोमा ! पण्णरतविहा एण्णत्ता) हे गौतम ! पन्द्रह प्रकार की कही है (तं जहा-सच्चमणप्पओगगती जाव करूनग. सरीरकायप्पओगगती) वह इस प्रकार-सत्यसनप्रयोजलि यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति। (नेरइयाणं भंते ! कइविहा पओजगती षण्णता ?) हे भगवन् ! लैरथिनों की कितने प्रकार की प्रयोगगति कही है ? (गोयला ! एक्कारविहा पण्णला) हे गौतम ! ग्यारह प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (सञ्चमणप्पओ . (से कि त पओगगती ?) प्रयोगमतिना सा मह छ ? (पओगगती पण्णरसविहा पण्णत्ता) प्रयोगगति प४२ प्रधानी ४ीछे-(तं जहा) ते प्रसार के (सच्चमणप्पओग गती) सत्यमनप्रयोगगति (एवं जहो पओगो भणितो) से अरे रेभ प्रयोगना ले। ४ा छ (तहा एसा वि भणियबा) मे रे माना अर्थात् तिनले पर ४॥ नये (जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती) सवत् एशरी२४यप्रयोगात - (जीवाणं भंते ! कतिविहा पओगगती पण्णत्ता 1) भगवन् ! वानी सा 4tરની પ્રગતિ કહી છે? (गोयमा ! पण्णरसविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! ५४२ ४ानी ४ी छे (तं जहा-सच्च मनप्पओगगती जाव फम्मगसरीरकायप्पओगगती) ते, PAR सत्य मनप्रयापति यावत् કાર્મણશરીરકાયપ્રગગતિ . " (नेरइयाणं भंते ! काविहा पओगगती पण्णत्ता ?) मावन् नरयिहानी या प्रनी अति ४ी-छ ? (गोयमा । एकारसविहा पण्णत्ता) 8 गौतम ! मशीयार अनी प्रयातीही छे (तं नहा) ते प्रारे (सच्चमणपओगगती) सत्य भनप्रयोग गति (एवं)

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