Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 864
________________ अंशापनास्त्रे .. भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता, अथ नो भवोपपातगति प्ररूपयितुं गौतमः पृच्छति-'से.किं तं नो भत्रोवयायगती ?' तत्-अथ का सा-कतिविधा, नो भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह'नो भोक्वायगती दुविहा पण्णत्ता' नो भरोषपातगति द्विविधा प्रज्ञप्ता, तत्र नो भवस्तायत् कर्मसम्पसम्पाद्य नेरयिकत्यादि पर्यायरहितो भवव्यतिरिक्तो व्यपदिश्यते स च पुद्गलः सिद्धो वा भवति तदुभयस्यापि उपयुक्तलक्षण भवातीवत्वात्, तस्मिन् नो भवे उपपातःप्रादुर्भावरूप एव गति गममिति नो भवोपपातगति, रिति, तदेव विशदयन्नाह-'तं जहापोग्गलणोंभवोववायगती सिद्ध नो भवोववायगती' तद्यथा-पुद्गल नो भवोपपातगतिः, सिद्ध नो भवोपंपातगतिश्च, तत्र गौतमः पृच्छति-से किं तं पोग्गल नो भवोववायगती ?', तत्-अथ का सा-कृतिविधा- पुद्गल नो भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'पोग्गलणो भत्रोवायगती-जं णं पामाणुपोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ पञ्चत्धिमिल्लं चरमंतं एगसमएणं गच्छइ' पुद्गल नो भयोपपातगतिस्तावत्-यत् खलु परमाणु पुद्गला लोकस्य पूर्वस्मात् चरमान्तात् पश्चिम चरमान्तम् एकसनयेन गच्छति, एवम्-'पञ्चस्थिमिल्लाओ वा चरमंताओ पुरथिमिल्लं चरमतं एगसम एणं गच्छई पश्चिमाद् वा चरमान्तात् पूर्वं चरमान्तम् , गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवान् ! नोभवोपपातगति किसे कहते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! नोभवोपपातमति दो प्रकार की कही है। कर्म के उदय से होने वाली नारकत्व आदि पर्यायों से रहित, भव से जो भिन्न हो उसे नोभव कहते हैं। पुल और सिद्ध भव से भिन्न हैं, क्योंकि यही दोनों. कर्मजनित, पर्यायों से रहित हैं । उस नोभव में उपपात रूप गति को नोभवोपपातगति कहा गया है । इसीका स्पष्टीकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं-नोभवोपपातगति के दो भेद ये हैं-पुद्गल नोभवोपपातगति और सिद्धनोभवोपपातगति। . - गौतमस्वामी-हे भगवान् ! पुद्गलनोभवोपपातगति किसे कहते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! पुद्गलपरमाणु लोक के पूर्वी चरमान्त अर्थात् छोर (अन्त) से पश्चिमी चरमान्त तक एक समय में चला जाता है, इसी प्रकार पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक एक ही समय में पहुंच जाता है, दक्षिणी '' श्री गौतभस्वाभा-डे मापन् ! न सवाषपात गति अन छ ? શ્રી ભગવાનનો ભષપાત ગતિ બે પ્રકારની કહી છે. કર્મના ઉદયથી થનારી નારકત આદિ પર્યાથી રહિત ભવથી જે ભિન હોય તેને નો ભવ કહે છે. એ પુદ્ગલ અને સિદ્ધ ભાવથી ભિન્ન છે, કેમકે આજ બને કર્માનિત પર્યાથી રહિત છે. તેને ભવમાં ઉપપાત રૂ૫ ગતિને ને ભોપાત ગતિ કહેલ છે. એનું જ સ્પષ્ટીકરણ કરતાં સૂત્રકાર કહે છે - ને ભપાત ગતિના બે ભેદ આ છે–પુદ્ગલોભપાત ગતિ અને સિદ્ધભપાતગતિ. - श्री गौतभस्वामी-3 भगवन् ! पुरानाला५त ४ छ ? । । શ્રી ભગવાન -હે ગૌતમ ! પુદ્ગલ પરમાણુ લેકના પૂવી ચરમાન્ત અર્થાત અન્નથી.

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