Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 847
________________ ९०७ प्रेमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् पर्वतस्य सपक्ष सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, सा एपा सिद्धि क्षेत्रोपपातगतिः ५, तव का सा भवोपपातगतिः? भवोपपातगत श्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-नैरयिकभवोपपातगतिः, यावद देवभवोपपातगतिः, तत् का सा नैरयिक मवोपपातगतिः ? नैरयिकभवोपपातगतिः सप्तविधा प्रज्ञप्ता, तबधा-रत्नप्रभापृथिवी नैरयिकभवोपपातगतिः, यावद् अधःसप्तमपृथिवी नैरपच्छिमद्ध मंदपव्वयसपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोचवायगई) धातकी खंड द्वीप में पूर्वार्ध और पश्चिमा मंदर पर्वत के सब दिशा-विदिशाभों में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (कालोयसमुद्दसपक्खिसपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) कालोद समुद्र में सब दिशाविदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (पुक्खरवरदी वद्धपुरथिमद्धभरहेरवयवाससपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती)पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध के भरत और ऐरवत वर्ष में सब दिशा-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति हैं (एवं जाव पुक्खरवरदीवद्धपच्छिमद्धमंदरपव्वतमपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) इसी प्रकार यावत् पुष्करवरद्वीपार्घ के पश्चिमार्थ के मंदर पर्वत में सब दिशा-विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातंगति हुई (से किं तं सिद्धखेतोववायगती) यह सिद्धक्षेत्रोपपागति हुई। (से किं तं भवोववायगती ?) भवोपपातगति कितने प्रकार की है ? (भवोववार्यगती चंउविहा पण्णत्ता) भवोपपातगति चार प्रकार की कही है (तं जहा) : वह इस प्रकार (नेरइयभवोववायगती जाच देवभवोववायगती) नैरयिक भवोपपातगति यावत् देव भवीपपातगति (से किं तं नेरइय भवोववायगती ?) नारकभवोपपातगति कितने प्रकार की है ? (नेरइयभवोववायगती सत्तविहा पण्णत्ता) नारक सपक्खिं सपडिदिसि सिद्धखेतोववायगई) पाती दीपमा पूधि म पश्चिमा महर । तिनी या हिश-विwिi सिद्धक्षेत्राताति छे (कालोयसमुद्द सपक्विं. 'सपडि . दिसि सिद्धखेत्तोत्रवायगती) gate समुद्रमा मधी हशा विशिभा सिद्धक्षेत्री५पातगतिले '(पुक्खरवरदीवद्धपुरथिमद्धभरहेरवयवाससपक्खिं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) Y०४२ વર દ્વીપાર્ધના પૂર્વાર્ધના ભરત અરવત વર્ષમાં બધી દિશા-વિદિશાઓમાં સિદ્ધક્ષેત્રો પપાત गति छ (एवं जाव पुक्खरवरदीवद्धपच्छिमद्ध मंदरपव्वय सपक्खिं सपडिदिसि सिद्धखेतो विवायगती) मे ४२ यावत् पु०४२१२ पाना पश्चिमाधना भन्४२ ५'तम मा u विदिशामा सिद्धक्षेत्र५५तगति छ (से तं सिद्धखेत्तोववायगती) मा सिद्धक्षेत्रीयाति थ '' (से कितं भवोववायगती ?) पातगति ४८ :४२नी छ १. (भवोववायंगती चउ'विहा पण्णत्ता) मवा५५तगतियार प्रहारनी ही छे (तं 'जहा) - मारे 'छे (नरइय 'भवोववायगती जाव देवभवोववायगती) नरयि:' मा५पातगति यावत् हे मातशत "(से किं तं नेरइयभवोववायगती ?) ना२४ सपातात मा ४२नी छ ? (नरइय भवो

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