Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 829
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ६ गतिप्रपातनिरूपणम् पण्णत्ता, तं जहा-नेरइय खेतोक्वायगती१, तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती२, मणूसखेत्तोववाथगती३, देवखेतोववायगती४, सिद्धखेत्तोवायगती५, से कि त नेरइयखेत्तोवनायगती ? नेरइयखेत्तोववायगती सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-रयणप्पभापुढवि नेरइयखेत्तोववायगती, जाव अहे सत्तमा पुढविनेरइयखेत्तोववायगती से तं नेरइयखेत्तोववायगती१, से किं तं तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती ? तिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-एगिदियतिरिक्वजोणियखेत्तोववायगली जाव पंचिंदियतिरिक्वजोणियखेतोववायगती, से तंतिरिक्खजोणियखेत्तोववायगती २, से किं तं मणूसखेत्तोववायगती ? मणूसखेत्तोक्वायगती दुविहा पण्णता, ते जहा-समुच्छिममणूसखेत्तोववायगती, गन्भवतियमणूसखेत्तोववायगती, से तं अणूसखेत्तोववायगती३, से किं तं देवखेत्तोववायगती ? देवखेत्तोक्वायगती चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-भवणवइदेवखेत्तोक्वायगती जाव वेनाणियदेवखेत्तोववायगती, से तं देवखेत्तोक्वायगती ४ ॥५० ६॥ ___ छाया-कतिविधः खल भदन्त ! गतिप्रपातः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पञ्चविधः गतिमपातः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रयोगगतिः १, ततगतिः २, वन्धनछेदनगतिः ३, उपपातगतिः ४, विहायोगतिः ५, तत् का सा प्रयोगगतिः ? प्रयोगगतिः पञ्चदशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-सत्यमनः गतिवक्तव्यता , शब्दार्थ-(कइविहे गं अंते ! गतिप्पवाए पण्णत्ते?) हे भगवन् ! गतिप्रपति कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचेविहे गइप्पवाए पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का गतिप्रपात कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (पओगगती) प्रयोगगति (ततगती) ततगति (वंधणछेदणगती) बन्धन-छेदनगति (उववायगती) उपपातगति (विहायगती) विहायोगति । जति पतव्यता Avat-(कइविहे णं भंते ! गतिप्पवाए पण्णत्ते १) ७ भगवन् । तिप्रभात 'eal प्रा२ना छ ? (गोयमा ! पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते) 3 गौतम ! यांय प्र गतिप्रभात छ (तं जहा) ते मारे (पंओगगती) प्रयोगमति (ततगती) duति (बंधणछेदणगती) मन्धन छेहनति (उववायगती) 6५५तगति (विहायगती) विहायोति

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