Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम्
सिद्धक्षेत्रोपपातादिवक्तव्यता.. मूलम्-से किं तं लिद्धखेत्तोक्वायगती ? अणेगविहा पण्णत्ता तं जहा-जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवयवाले सपक्खं सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीने चुल्लहिलवंतसिहरिवासहरपव्वतसपक्खं सपडिदिसि सिद्धखेतोदवायपती, जंबुद्दीवे दीवे हेसवतहेरपणवाससपक्खं सपडिदिसिं सिद्धखेतोववागती, जंबुदीचे दीचे सदावह वियडावइ वटवेयडू सपक्वं सपडिदिसि सिद्धखेत्तोक्वायती, जंबुद्दीवे दीवे महाहिमवंतरुप्पिवासहरपत्रतसमक्खं लपडिदिति सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे हरिवासरम्मगवाललपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, जंबुद्दीवे दीवे गंधापाति सालवंतपदयबट्टवेयड्ड सपक्खं सपडिदिसि सिद्धखेत्तो. ववायगती, जंबुद्दीवे दोके णिसहणीलवंतवासहरपव्वतसपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोक्वायगती, जंबुद्दोवे दीवे पुनविदेहावरविदेहसपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेतोक्वायगती, जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु उत्तरकुरुसप. ‘खि सपडिदिसि सिद्धखेतोबायगती, जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वयस्स सपक्खि सपडिदिसिं लिखेचोरवायगती, लवणे समुवे सपक्खि सपडिदिसिं सिद्धखेतोवनायगती, पायइसंडे दीवे पुरथिमद्धपच्छिमद्धमंदरपव्वत सपक्खि लपडिदिसिं सिद्धखेचोचवायगती, कालोय समुदसपक्खिसपडिदिसि सिद्धखेसोववायगती, पुरखरवरदीवद्धपुरस्थिमछभरहेरवयवाससपक्खि लपडिदिसिं सिद्ध खेतोवायगती, एवं जाव पुक्खरवरदीवद्धपच्छिमद्धर्मदरपवत लपक्खि सपडिदिसि सिद्धखेत्तोववायगती, से तं सिद्धखत्तोववायगती५, से किं तं भवोववायगती ? भवोववायगती चउव्विहा पण्णत्ता, तंजहा-नेरइयभवोत्रवायगती, जाव देवभवोववायगती, से किं तं नेरइयसवोवनायगली ? नेरइयभवोववायगती सत्तविहा 'पण्णता, तं जहा-एवं लिखवजो भेदो साणियबो जो चेव खेत्तोववा_ 'यगतीए सो चेव, से तं देवभवोववायगती, से तं भवोक्वायगती । से

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