Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 844
________________ ९०४ ভাবশা जाव सुकलेस्सेसु वा, से तं लेलाणुवायगई१२, ले किं तं उदिस्सपवि. भत्तगई ? उदिस्लपविभत्तगई-जं णं आयरिय का उपन्झायं वा थेरं वा पबत्तिं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेदं या उदिसिय उदिसिय गच्छइ, से तं उदिस्सियपविभत्तगई१३, से किंतं चउपुरिस्पविभत्तगई? से जहा नामए चत्तारि पुरिसा समगं पविटा लमग पजविया१, समगं पविट्टा विसमं पजवियार, दिसमं पविटा समग पजविया३, विसनं पविटाविसमं पजविया४, से तं चउपुरिसपविभत्तगई१४, से किं तं वंकगई ? बैकगई घउव्विहा पण्णता, तं जहा-घनया धमणया लेलगया पडणया, से तं वंकगई१५, से किं तं पंकगई ? पंकगई-से जहा णामए केहपुरिसे पंकसि वा उदयंसि वा कार्य उठिरहिया गच्छइ, से तं पंकगइ१६, से किं तं वंधणविमोयणगई ? वंधणविसोयणगई-जं गं अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलंगाण वा विल्लाण वा कविट्ठाण वा भट्टाण वा फणसाण वा दालिमाण वा, पारेक्ताण वा, अक्खोलाण वा चाराण वा, बोराण वा, तिंडुयाण वा पकाणं परियागयाणं बंधणाओ विप्पसुकाणं नियाघाएणं अधेवीससाएगई पवत्तइ, से तं बंधविलोरणगई, से तं विहायोगई१७ पण्णवणाए भगवईए पओगपयं सर१६ ॥सू० ७॥ .. , छाय-तत् का सा सिद्धक्षेत्रोपपातगतिः ? अनेकविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरावतवर्षे सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बुद्वीपे चुल्ल हिमवच्छिखरि वर्ष सिद्धक्षेत्रोपपात आदि की वक्तव्यता शब्दार्थ-(से किं तं सिद्धखेत्तोरवायगती ?) सिद्धक्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (जंबुद्दीवे दीवे) जम्बू द्वीप नामक द्वीप में (भरहेरवयवाले) भरत और ऐरवत क्षेत्र में (सपक्खं) सब दिशाओं में (सपडिदिसि) लघ विदिशाओं में - સિદ્ધ ક્ષેત્રે પપાત આદિની વક્તવ્યતા शहाथ-(से किं तं सिद्धखेत्तोववायगती ?) सिद्ध क्षेत्रापानति at ४२नी छ ? (अणेगविहा पण्णत्ता) भने १२नी ही छे (तं जहा) ते मा १२ (जंबुद्दीवे दीवे) स्मूदी५ नाम द्वीपमा (भरहेरवयवासे) मरत २मने औरत क्षेत्रमा (सपक्ख) मा

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