Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 833
________________ प्रपोधिनी टीका पद १६ १. ६ गतिप्रपातनिरूपणम् पभोगगती १, ततगती २, बंधणछेदणमती ३, उपवायगती ४, विहारगती ५' तद्यथाप्रयोगगति १, ततगतिः २, बन्धनच्छेदनशतिः ३, उपपातगतिः ४, विहायोतिः ५, तत्र "व्यापारविशेषात्मकः प्रागुक्तस्वरूपः प्रयोगः पञ्चदशनकारकी बोध्यः, स एव गतिः प्रयोग गतिः देशान्तरप्राप्तिलक्षणा वोध्या, सत्यमनः प्रभृतिपुद्गलानां जीवेन व्यापार्यमाणानां यथा'योगमल्पबहुदेशान्तरणसनात् १, तलगतिः-तता-विस्तृताचासौ गतिथेति ततगतिः, तथा च यं ग्रामं सन्निवेशं या प्रति जिनदत्तादिः प्रस्थितः विना तं ग्रामादिकम् अद्यापि यावन प्राप्नोति तावदन्तरापथि एकैकस्मिन् पदन्यासे सति तत्तदेशान्तरप्राप्तिस्वरूया गतिरस्तीति सा ततगति यंपदेश्यते । तत्र पदन्यासस्य शरीरव्यापाररूपप्रयोगात्मकतया प्रयोगगतावन्तर्भावसं भवेऽपि विस्तृत तत्मविशिष्टत्य तल्प ततो व्यतिरिक्तत्वात् न पुनरुक्तिसंभवः २, वन्धनच्छेदनमतिः बन्धनरय छेदनं दधचच्छेदनं तस्माद्गतिः वश्नच्छेदनगतिस्तु जीवेन भगवान् उत्तर देते है-जैतम गतिप्रपात पांच प्रकार का है, यथा-(१) प्रयो. ' गगति (२) ततगति (३) बन्धन छेवनगति (४) जपपालगति और (५) विहयोगति इनमें से व्यापार रूप प्रयोग पन्द्रह प्रकार का पहेले कहा जा चुका है। प्रयोगरूप ___ गति को प्रयोगगति कहते हैं । यह देशान्तरप्राप्ति रूप है, क्योंकि जीव के द्वारा प्रेरिल सत्यनल आदि के घुद्धल यथायोग्य थोडी-बहुत दूर जाते हैं। तता अर्थात 'विस्तृत गति तत्तगति कहलाती है। जैसे जिनदत्त आदि किसी ग्राम या सनिवेश आदि के लिए रवाना हुआ है, किन्तु उस ग्राम या सनिवेश तक अभी पहुंचा नहीं है, बीच रास्ते में है और एक-एक कदम आगे बढ़ रहा है, वह ततगति कहलाती है। यद्यपि कदम बहाना जिनदास के शरीर का प्रयोग ही * इस कारण यह गति भी प्रयोगगति में गिनी जा सकती है, मगर इसमें विस्ततता की विशेषता होने से अलग गिना है, अतएव पुनरुक्ति नहीं समझना चाहिए । बन्धन का छेदन होना बन्धनछेदन और उससे होने वाली શ્રી ભાગવાન ઉત્તર આપે છે-છે ગૌતમ! ગતિ પ્રપાન પાંચ પ્રકારના છે જેમકે ૧) प्रयोगगति () ततजति (3) म-धन छेड्न गति (४) ५५तगति भने (५) विहायोगति. તેમાથી વ્યાપાર રૂપ પ્રાગ પંદર પ્રકારના પહેલા કહી દિધેલ છે. પ્રોપ્રરૂપગતિને પ્રગતતિ કહે છે. એ દેશાન્તર રૂપ છે, કેમકે જીવના દ્વારા પ્રેરિત મન આદિના પગલે યથા એગ્ય થોડા આઘી દૂર જાય છે તતા અર્થાત વિહતગતિ તતગતિ કહેવાય છે. જેમકે જિનદત્ત બાદિ દઈ ગામના અગર સન્નિવેશ આદિને માટે રવાના થયેલ છે, પરંતુ એ { ગામ કે સન્નિવેશ સુધી હજી પહેચેલ નથી, વચમાં રસ્તામાં છે અને એક એક કદમ આગળ વધી રહેલ છે, તે તતગતિ કહેવાય છે. જોકે કદમ વધવું જિનદત્તના શરીરનો પ્રાગ જ છે. એ કારણે આ ગતિ પણ પ્રયોગ ગતિમાં ગણાઈ શકાય છે, પરંતુ આમાં વિસ્તૃત તતાની વિશેષતા હેવાથી અલગ ગણી છે. તેથી પુનરૂક્તિ ન સમજવી જોઈએ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881