Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 825
________________ वोधिनी टीका पद ९६ ८०५ जीवप्रयोगे चतुष्कसंयोग निरूपणम् સ્ટેપ ओगिणो य आहारगतरीरकायपजीवियो य, आहारगगोसासरीरकायप्प भोगिणो य कम्मासरीरकायप्पओगी च १५' अथवा एकेच - केचन औदारिकमिश्रशरीर कायम योगिणश्च, आहारकशरीरकायप्रयोगिणश्च, आहारकमिश्रशरीरायप्रयोगिणश्च भवन्ति, कश्चित् कार्मणशरीरकायप्रयोगी च भवति १५, 'अहवे य ओरालियगी सासरीरकायप्पओगिणो य आहारगसरीरकायप्पओभिगो व आहात्यमीसारीकायपओगियो य कम्पासरीरकायष्यओगिणो य' १६' अथवा एकेच–केचन औदारितमिश्रारीरायप्रयोगिणश्च, आहारकशरीर काय प्रयोगणश्च केचित्, केचन आहार मिश्रसरीरकावप्रयोगिगग्य, केवन कार्मणशरीरायप्रयोः गणश्च भवन्ति १६, ' एवं एए चउसंजोए सोलस भंगा सर्वति' एनस् - उतरीत्या एते - पूर्वोक्ताचतुः संयोगेन पोडश भट्टा भवन्ति तथा च औदारिक मिश्राहारक मिश्रकार्मणरूपचतुर्णीपदानामेकत्वाभ्यां पोडश मा सम्पन्बार, 'सन्वेति य णं संपिंडिया अतीति भंगा भवंति' सर्वेऽपिच खलु एकद्विनियतुः संयोविशिष्टाः संपिण्डिताः मिलिताः सन्तः अशीति भद्रा भवन्ति, तथा च प्रथमसंयोगे अष्टी, द्विकरूंयोगे चतुर्विंशतिः, त्रिसंयोगे द्वात्रिंशद्, शरीरकाशानी होते हैं, बहुत-से आहारक मिश्र शरीर कायप्रयोगी होते हैं, एक कार्पणशरीरायप्रयोगी होता है । (१५) अथवा पत-से औदारिक मिश्रशरीरका प्रयोगी होते हैं, बहुत-से आहारकशरीरकामयोगी होते हैं, बहुत-से आहान्कमिश्रशरीर कायप्रयोगी होते हैं और बहुत से कार्मणशरीरायप्रयोगी होते हैं । (१६) ये चार-चार प्रयोगों के संयोग से सोलह भग होते हैं । औदारिकमिश्र, आहारक, आहारकमित्र और कार्मण इन चार के संयोग से, एकवचन और बहुवचन की शिक्षा से सोलह संग सम्पन्न हुए । एक, दो, तीन और चार के संयोग वाले सब संग मिल कर अस्ती होते हैं यथा-एक-एक प्रयोग ते आठ, द्विक संयोगी चौबीस, त्रिसंयोगपतील और चतुष्कसंयोगी सोलह । પ્રયાગી હેાય છે, ઘા આહારક મિશ્રશરી કાયપ્રયેાગી હાય છે, એક કા'ણુશરીકાયપ્રયે,ગી होय छे. (१५) અથવા ઘણા ઔદારિક મિશ્રશૌકાયપ્રોગ? હુંય છૅ, ઘણા આહારશરીરકાય “પ્રયેાગી હાય છે, ઘણા આહાર- સિથ્રશરીરકાયપ્રયાગી હાય છે અને ઘણા કાણુશરીર हाय प्रयोगी होय छे (१६) આ ચાર ચાર પ્રત્યે.ગેાતા સચેાથી સેળ લ ગ થાય છે ઔદારિક મિશ્ર અહારક અને આહાર્ક મિશ્ર અને કાણુ એ ચાના સ યેાગથી એકવચન અને બહુવચનની વિવક્ષાથી સાળ ભંગ સપન્ન થયા. એક એ ત્રણ અને ચારના સચેગવાળા બધા ભંગ મળીને એંસી થાય છે, જેમ-એક એક પ્રત્યેાગના આઠ, દ્વિસ યેગી ચાવીસ ત્રિક સાળી ખત્રીસ અને ચતુષ્ટ સચગી સાળ.

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