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प्रजापनास्त्रे छाया-नैरयिकः खलु भदन्त ! यानि द्रव्याणि भापकतया गृहातिनानि झिम् स्थितानि गृह्णाति, अस्थितानि गृह्णाति ? गौतम ! एवञ्चर यथा जीववक्तव्यता भणिता तथा नैरयिकस्यापि यावत् अल्पवहुत्वम्, एवम् एकेन्द्रिय बी दण्डको यावद् वैमानिकाः, जोशः खलु भदन्त ! यानि द्रव्याणि भापकतया गृह्णाति तानि किम् स्थितानि गृजाति, अस्थितानि गृह्णति ? गौतम ! एवं चैव, पृथकत्वेनापि ज्ञातव्यम्, यावद् वैमानितः, जीयः ख भदन्त ! यानि द्रव्याणि सत्य भापकतया गृह्णाति, तानि किम् स्थितानि गृहाति, अस्थितानि गृहाति ?
शब्दार्थ-(नेरइएणं भते! जाई दवाई भासत्ताए गेह) हे भगवन ! नारक जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है (नाइ कि लियाई गेण्हति, अठियाई गेण्हति ?) क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! एवं चेव) हे गौतम इसी प्रकार (जहा जीवे वत्तव्वया भणिया तहा नेरझ्यस्स वि) जैसे जीव के विषय में वक्तव्यता कही है, वैसे नैरयिक की भी (जाव अप्पाबहुयं) अल्प बहुत्व तक (एवं एगिदियवज़ो दंडओ जाव वेमाणिया) इसी प्रकार एकेन्द्रीय को छोडकर वैमानिकों तक दंडक कहना चाहिए - (जीवाणं भंते ! जाई व्वाई भासत्ताए गेण्हंति) हे भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करते हैं (ताई किं ठियाई गेण्हति अठियाई गेण्हंति) क्या स्थित द्रव्यों को ग्रहण करते हैं या अस्थित द्रव्यों को ग्रहण करते हैं ? (गोयमा ! एवं चेव पुहुत्तेण वि णेयवं) हे गौतम इसी प्रकार पृथक्त्व से भी जानना चाहिए (जाव वेमाणिया) यावतू वैमानिकों तक ___ (जीवे णं भंते ! जाई व्वाई सच्चभासत्ताए गेण्हति) भगवन ! जी जिन
wal-(नेरइएणं भंते ! जाई दबाइ भासत्ताए गेहइ) 8 लगवन् । ना२४ 04 २ द्रव्याने भाषाना ३५मां हय ४२ छे (ताई किं ठियाई गेहद अठियाई गेहइ ? शु स्थित द्रव्याने यरुए। ४२ छ भार स्थित द्रव्याने ग्रह ४२ छ ? (गोयमा एवं चेव) है गौतम ! ये ४ारे (जहा जीवे वत्तव्वया भाणिया तहा नेरइयस्स वि) २वीन विषयमा १तव्यता ४ी छ. मेवी नयिनी ५ए समावी. (जाव अप्पा बहुयं) २५८५ मधुर सुधी (एवं एगिदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिया) मेरी मारे भेन्द्रिय अवाय वैमानित સુધી દંડક કહેવા જોઈએ.
(जीवाणं भंते ! जाई व्वाइं भासत्ताए गेण्हंति) 3 लगपन् । ७२ द्रव्योन भाषान। ३५मां अहए४२ छ (ताई किं ठियाई गेण्हंति, अठियाई गेण्हंति ?) शु स्थित द्रव्याने अड ४२ छे ॥२ अस्थित द्रव्य। यहY ४२ छ? (गोयमा ! एवं चेव पुहुत्तेण विणेय) मेरी प्रहारे पृथ४थी पy any नये (जाव वेमाणिया) यावत् वैमानि। सुधी
(जीवेणं भंते ! जाई दव्याई सच्चभासत्ताए गेण्हति) हे लगवन्! १२ व्याने