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प्रक्षापनास्त्र हे गौतम ! 'नो सच्चभासत्ताए निसरइ' मृपाभापकत्या गृहीतानि द्रव्याणि नो सत्यभापकतया निसृजति, अपितु-'मोसमासत्ताए निसरइ' मृपाभापकतया निसृजति, 'णो सच्चामोसभासत्ताए निसरई' नो सत्यमृपाभापकतया निसृजति, 'णो असच्चामोसमासत्ताए निसरह' नो असत्यमृपामापकतया निसृजति, ‘एवं सच्चामोसमासत्ताए वि' एवम्-सत्यभापकतयेव मृपाभापकतयेव च सत्यमृपाभापकतयापि गृहीतानि द्रव्याणि नो सत्यभाषकतया निसृजति नो मृपामापकल्या निसृजति नो असत्यमृपाभाषकतया निटजति अपितु-सत्यमृपामापकतयैव निसृजति, 'असच्चामोसभासत्ताए वि एवं चेव' असत्यमृपाभापकतयापि गृहीतानि द्रव्याणि एपञ्चैव-पूर्वोक्तरीत्यैव नो सत्यभाषकतया नो वा मृपाभाषकतया नापि सत्यमृपाभापकतया निसृजति अपितु असत्यमुपासापकतयैव निसृजति किन्तु-'णवरं असच्चामोसमासत्ताए विगलि. दिय तहेव पुच्छिज्जति' नवरस्-पूर्वापेक्षया विशेपस्तु असत्यमृपाभापकतया विकलेन्द्रिया:द्वित्रिचतुरिन्द्रिया स्तथैव-पूर्ववदेव पृच्छयन्ते 'जाए चेव गिण्डइ ताए चेव निसरइ' यानि चैव लता है ? सत्याभूषा भाषा के रूप में निकालता है ? अथवा क्या असत्यामृषा भाषा के रूप में निकालता है ?
भगवान्-हे गौतम ! जीव मृषा भाषा के रूप में गृहीत भाषाद्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में नहीं निकालता, बल्कि मृषा भाषा के रूप में ही निकालता है, सत्याषा भाषा के रूप में अथया असत्याभूषा भाषा के रूप में भी नहीं निकालता है।
इसी प्रकार जो द्रव्य सत्यामृषा भाषा के रूप में ग्रहण किए गए हों, उन्हें जीव संस्थामा साषा के रूप में ही त्यागता है, सत्य भाषा, असत्य भाषा, अथवा अरूत्यानपा भाषा के रूप में नहीं त्यागता है। ... इसी प्रकार जो द्रव्य असत्यामृपा भाषा के रूप में ग्रहण किए जाते हैं, उन्हें जीघ असत्याभूषा भाषा के रूप में ही त्यागता है, सत्यभाषा के रूप में नहों, कृषा भासा के रूप में नहीं अथवा सत्याषा भाषा के रूप में ली नही त्यागता है। इसमें विशेष बात यह हैं कि विकलेन्द्रियों के विषय में भी पृच्छा સત્ય મૃષા ભાષાના રૂપમાં ત્યાગે છે? અથવા શું અસત્યા મૃષા ભાષાના રૂપમાં ત્યાગે છે?
શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! જીવ સૃષાભાષાના રૂપમાં ગૃહીત ભાષા દ્રવ્યોને સત્યભાષાના રૂપમાં નથી કાઢતે, પણ મૃષાભાષાના રૂપમાં જ ત્યાગે છે. સત્યામૃષાભાષાના રૂપમાં અથવા અસત્યા મૃષાભાષાના રૂપમાં પણ નથી ત્યાગ
એ રીતે જે દ્રવ્ય સત્યમૃષા ભાષાના રૂપમાં ગ્રહણ કરેલ હોય તેમને જીવ સત્યા મૃષા ભાષાના રૂપમાં જ ત્યાગે છે, સત્યભાષા, અસત્યભાષા અથવા અસત્યા મૃષાભાષાના રૂપમાં નથી ત્યાગ.
એ જ પ્રકારે જે દ્રવ્ય અસત્યામૃષાના રૂપમાં ગ્રહણ કરાય છે, તેમને જીવ અસત્યા મૃષા ભાષાના રૂપમાં જ ત્યાગે છે, સત્ય ભાષાના રૂપમાં નહી મૃષાભાષાના રૂપમાં નહીં