Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 785
________________ ८४६ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू. ३ जीवप्रयोगनिरूपणम् _ 'अहवेगे व करमासरीरकायप्पोगी वि' अथवा एकश्च कश्चिद् द्वीन्द्रियः कार्मणशरीरकायप्रयोगी अपि भवति, अथ बहुत्वविशिष्टं तृतीयं भङ्गं प्रतिपादयितुमाह-'अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य' अथवा एकेच-केचन द्वीन्द्रियाः कार्मणशरीरकायप्रयोगिणश्च भवन्ति 'एवं जाव चउरिदिया वि' एवम्-द्वीन्द्रिया इव यावत्-त्रीन्द्रियाश्चतुरिन्द्रिया अपि वक्तव्याः 'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया सहा नेरइया' पञ्चेन्द्रितिर्यग्योनिका यथा नैरयिकाः प्रतिपादितास्तथा प्रतिपत्तव्याः, किन्तु-'णवरं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि' नवरम्-नैरयिकापेक्षया विशेषस्तु औदारिकशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, एवम्-'ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी विर औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणोऽपि पञ्चेन्द्रितिर्यग्योनिका भवन्ति, तथा च वैक्रियशरीरकायप्रयोगि-वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगिस्थाने औदारिकशरीरकायप्रयोगी-औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिण वक्तव्याः, एवञ्च सत्यमनःप्रयोगिप्रभृति-असत्यामृतावचःप्रयोगिपर्यन्त मष्टपदानि औदारिकसम्बन्धिपदद्वयमेलनेन दशपदानि बहुत्वविशिष्टानि सदाऽवस्थितानि के लिए कहते हैं-अथवा कोई एक हीन्द्रिय जीव कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी होता है । अब चतुत्वविशिष्ट तीसरे अंग का प्रतिपादन करते हैं-कोई बहुत से द्वीन्द्रिय कार्मणशरीरसायप्रयोगी भी होते हैं। द्वीन्द्रिय जीवों के लदान त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रय जीवों की वक्तव्यता समझलेली चाहिए। , ' पंचेन्द्रिय तिथचों का कथन नारकों के सदृश जालना चाहिए, मगर उनमें विशेषता यह है कि वे औदारिकशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं और औदारिकमिश्रशरीरबायजयोगी भी होते हैं। अतएव इसको दैक्रियशरीरकायप्रयोगी और वैक्रियनिशरीरकायोगी के साथ साथ औदारिकशरीरकायप्रयोगी और औदारिकमिशतीरकायप्रयोगी कहना चाहिए । इस प्रकार चार तरह के मनप्रयोग और चार तरह वचनप्रयोग, तथा वैक्रिय और वैक्रियमिश्र इसके साथ औदारिक और औदारिकमिश्र, इन दो पदों को मिलाने से बारह पद सदैव એ પ્રતિપાદન કરવાને માટે કહે છે--અથવા કઈ એક કોન્દ્રિય જીવ કાર્મણ શરીરકાય પ્રયેગી પણ થાય છે. હવે બહત્વ વિશિષ્ટ ત્રીજા ભંગનું પ્રતિપાદન કરે છે. કેઈ ઘણા બે ઇન્દ્રિય કાર્મ શરીરકાય પ્રાણી પણ હોય છે. દ્વીન્દ્રિય જીવની સમાન શ્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય ની વક્તવ્યતા પણ સમજવી જોઈએ. . પચેન્દ્રિય તિ નું કથન નારકેના સદશ જાણવું જોઈએ પણ તેમાં વિશેષતા એ છે કે તેઓ દારિક શરીરકાય પ્રવેગી પણ હોય છે અને ઔદારિક મિશ્ર શરીરકાય પ્રવેગી પણ હોય છે. તેથી જ તેમને વૈક્રિય શરીરકાય પ્રાણી અને વૈકિય મિશ્ર શરીરકાય પ્રગની સાથે સાથે દારિક શરીરકાય પ્રયાગી અને ઔદારિક મિશ્રશરીર કાયપ્રાણી કહેવા જોઈએ. એ પ્રકારે ચાર પ્રકારના મનપ્રાગ અને ચાર પ્રકારના વચનપ્રયેળ તથા

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