Book Title: Pragnapanasutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 807
________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १६ सू० ४ जीवप्रयोगे त्रिकसंयोगनिरूपणम् ओगी य १, अथवा एकश्च-कश्चिन्मनुष्यः औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च आहार कशरीरकायप्रयोगी च आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भवति १, 'अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य आहारगमरीरकायप्प मोगी य आहारगमीसासरीरकायप्पभोगिणो य २१ अथवा एकश्च-कश्चिन्मनुष्यः औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च आहारकशरीरकायप्रयोगी च भवति, केचित् आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च भवन्ति २, 'अहवेगे य ओरालियमीसगसरीरकायप्पओगी य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पअगी य३' अयवा एकश्च-कथन औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च, केचिद् आहारकशरीरकायप्रयोगिपश्चे, कश्चिद् आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च भवति ३, 'महवेने य ओरालियमीसासरीरकायप्पभोगी य आहालसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य ४' अथवा एकच-कश्चिद् औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी च, केचिद् आहारकशरीरकाययो. गिणश्च, केचिद् आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणश्च भवन्नि ४, 'अहवेगे य ओरालियमीसामनुष्य आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, कोई एक मनुष्य आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है। (१) । - 'अथवा कोई एक मनुष्य औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है, कोई एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, और अनेक मनुष्य आहारकमिश्रशरीर• कायप्रयोगी होते हैं । (२) ____ अथवा कोई एक मनुष्य औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है और कोई एक मनुष्य आहारकशरीरकाययोगी होते हैं कोई एक मनुष्य आहारकमिश्र. शरीरकायप्रयोग होता है । (३) ___ अथवा कोई एक मनुष्य औदारिकमिश्रशरीरकायमयोगी होता है, बहुत-से मनुष्य आहारकशरीरकायप्रयोगी होते हैं और बहुत से मनुष्य आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं। (४) આહારક શરીરકાયપોગી થાય છે, કે એક મનુષ્ય આહ રક મિશ્ર શરીરકાયપ્રગી थाय छ (१) ' અથવા કેઈ એક મનુષ્ય દારિક મિશ્રશરીરકાયપ્રયોગી થાય છે, કે એક આહારક શરીરકાયપ્રયોગી થાય છે, અને અનેક મનુષ્ય આહારક મિશ્ર શરીરકા પ્રવેગી થાય છે (૨) અથવા કઈ એક મનુષ્ય દારિક મિશ્રશરીરકાયપ્રયોગી થાય છે ઘણુ મનુષ્ય આહારક શરીરકાયપ્રયોગી થાય છે, અને કેઈ એક મનુષ્ય આહારક મિશ્રશરીરકાયપ્રગી थाय' छे (3) અથવા કોઈ એક મનુષ્ય ઔદાદિક મિશ્રશરીરકાયપ્રયેગી થાય છે, ઘણુ મનુષ્ય આહારકશરીરકાયપ્રયોગી બને છે અને ઘણા બધા મનુષ્ય આહારક મિશ્રશરીરકાયમયેગી थाय' छ (४) प्र० १०९

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