________________
७०४
-
प्रमापनास्त्रे कानाम्, नवरं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि सन्ति ७, कतिविधा खलु भदन्त ! ईहा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पञ्चविधा ईहा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-श्रो न्द्रिये हा, यावत् स्पर्शनेन्द्रियेहा, एवं यावद् वैमानिकानाम् , नवरं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि ८, कतिविधः खलु भदन्त ! अवग्रहः प्रजप्तः ? गौतम ! द्विविधः अवग्रहः प्रज्ञप्तः, तद्यया- ग्रहश्च, व्यञ्जनावग्रहश्च, व्यञ्जनावग्रहः खल
अवायादिवक्तव्यता। शब्दार्थ-(कविहे णं भंते ! इंदिय अवाए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! इन्द्रिअपाय कितने प्रकार का कहा है ? (गोधमा ! पंचविहे इंदियावाए पण्णत्ते) हे गौतम ! इन्द्रियावाय पांच प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोईदिय अवाए जाव फासिदिय अवाए) श्रोत्रेन्द्रिय-अपाय यावत् स्पर्शनेन्द्रियअपाय (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारको यात वैमानिकों का (णवर) विशेष (जस्स जइ इंदिया अस्थि) जिसकी जितनी इन्द्रियां हैं। ' ___(कइचिहा भंते ! ईहा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! ईहा कितने प्रकार की कही ? (गोयला ! पंचविहा ईहा पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच प्रकार की ईहा कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोइंदिर ईहा जाव फासिदिय ईहा) श्रोत्रेन्द्रिय ईहा यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-ईहा (एवं जाव वेमाणियाण) इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक (वरं जस्स जइ इंदिया) विशेष यह कि जिसकी जितनी इन्द्रियां
(कइविहे णं भले ! उग्गहे पण्णत्ते) हे भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुबिहे उग्गहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का अवग्रह कहा है (तं जहा अत्थोग्गहे य वंजणोरगहे य) अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह (वं
અવાયાદિ વક્તવ્યતા शहाथ-(कइविहे ण भंते ! इंदियअवाए पण्णत्ते १) मन् !न्द्रय--वाय डेटमा प्रा२ना ४६॥ छ (गोयमा ! पंचविहे इंदियअवाए पण्णत्ते) हे गौतम ! छन्द्रिय पाय पाय
ना . छे (तं जहा) ते मा ४ारे (सोइंदिय अवाए जाव फसिदिय अवाए) त्रिन्द्रिय अवाय यावत् २५शनन्द्रिय-बाय (एवं नेरईयाणं जाव वेमाणियाणं) मे ४ारे नार। यावत् मानिओना (णवरं) विशेष (जस्स जइ इंदिया अस्थि) रेमनी रेसी न्द्रियो छ ___(कइ विहणं भंते ! ईहा पण्णत्ता १) हे भगवन्डा वा प्रा२नी ही छ ? (गोयमा! पंचविहा ईहा पण्णत्ता) हे गौतम ! पांय अनी हा हाय छ (तं जहा) ते २॥ प्रारे (सोइंदिय ईहा जाव फासिदिय ईहा) त्रिन्द्रिय है। यावत् २५४न्द्रिय धडा (एवं जाव वेमाणिया) से प्रारे यावत् वैमानि। सुधी (णवरं जस्स जइ इंदिया) विशेष से छे । જેમની જેટલી ઈન્દ્રિય
(कइविहेणं भंते । उग्गहे पण्णत्ते) में वन्! अब सा प्रा२ना ४ा छ ? (गोयमा। दुविहे उग्गहे पण्णत्ते) गौतम ! मे प्रा२ना अपयह हाय छे (तं जहा-अत्थोग्गहे